रविवार, 30 जनवरी 2011

आज की हिंदी कहानी - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

आज की हिंदी कहानी
वर्तमान परिवेश में पुराने मानक सामयिक कारगर सिद्ध नहीं हो सकते। अध्ययन के हिसाब से प्रेमचन्द जरूरी हैं पर आज कहानियों में नवीनता, मनोवैज्ञानिकता और सम सामयिकता की महत आवश्यकता के चलते जरूरी नहीं की ये आज की कहानियां अच्छा या ख़राब मनोरंजन करें पर समय को नाकारा नहीं जा सकता। आदर्श अब बंधन लग सकता है। एक देश की सीमा में जकड़ी संस्कृति यदि सार्वभौमिकता को समां नहीं सकती तो वह चिरजीवी नहीं हो सकती।
भारत में ही अनेक हिंदी और भारतीय भाषाओँ में विभिन्न विषय लिए हुए कहानियों का प्रकाशित होना बहुत बड़ी बात है। बहुत सेप्रकाशनार्थ बंधन के चलते यह बहुत मुश्किल है।
प्रवासी कहानियों की बात करें तो प्रवासी कहानियों को आम तौर से तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है।
एक तो लीक पर चलने वाले परम्परात्मक लेखक या कहानीकार जो प्रवास की जिन्दगी से ऊबे और समय बिताने के लिए कहानी लिख रहे हैं और उसके प्रचार में केवल अपनी कहानियों को ले रहे हैं। यदि उनकी कहानियां अच्छी हैं तो उन्हें प्रचार प्रसार मिलना चाहिए पर ऐसा नहीं है।
कहानी या किसी भी विधा में लिखने के लिए उसमें इंटीग्रेशन जरूरी है। उस समाज में पैठ और उसका मनन चिंतन में हिस्सा भी जरूरी है। किसी भी समाज और देश में उसकी नसों को यानि भागीदारी के बिना या अपने शरीर पर मानसिक या शारीरिक झेले बिना या अध्ययन के बिना लिखना केवल काल्पनिकता के सहारे लिखी बात हो सकती है। जैसा की भारत में प्रचुर मात्र में लेखन हो रहा है
बहुत से प्रवासी लेखकगण इससे अछूते नहीं हैं।
पर कुछ प्रवासी लेखकों ने नयी हिंदी और भाषाई कहानी को विस्तार तो दिया ही है बल्कि नए अछूते विषयों पर गंभीर चिंतन भी परोसा है और अनेक भारतीय और विदेशों में बनी भाषाई फिल्मों में कुछ हद तक प्रस्तुत भी किया गया है।
तीसरी तरह के लेखा वे हैं जिन्हें हिंदी ठीक ढंग से लिखनी नहीं आती पर दूसरे और संपादकों कि मदद से छप जाते हैं तथा इनमें उन लेखकों को भी शामिल किया जा सकता है जो धर्म या उसमें पैठ के लिए लिखते हैं ( इनमें जैसे कोई पुजारी है, कोई धार्मिक संस्था का पदाधिकारी है) यह विदेशों में अधिक प्रचलन में है। इसमें हिन्दू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों के सेवक भी इस प्रकार का साहित्य लिख रहे हैं पर वह कहानी कविताओं के बौद्धिक स्तर पर मान्यता नहीं प्राप्त कर सकता। भले ही अपने परिवार और अपने दायरे में पहचान पा ले।

कोई टिप्पणी नहीं: