रक्त से बढ़कर बहनों का प्रेम
आज रक्षा बंधन है. नार्वे में रक्षाबंधन का यह दिन मेरे जीवन का ऐतिहासिक और कभी न भूलने वाला बन गया. सन १९८५ से मेरे साहित्यिक जीवन में जुड़ी बहन साहित्यकार विद्या विन्दु सिंह,
लखनऊ विश्व विद्यालय की प्रो बहन कैलाश देवी सिंह ने मुझे राखी बांधी.
नार्वे की माया भारती को भी कलकत्ता से आये बहुत बड़े विद्वान् शांति निकेतन में साहित्य के प्रोफ़ेसर रामेश्वर मिश्र जैसे भाई मिले और उन्होंने उन्हें राखी बाँधी.
घर बैठे ईश्वर ने सुनी और भाइयों को बहने मिलीं और बहनों को भाई.
यदि सगी बहन राखी न बांधे तो क्या फर्क पड़ता है. बात तो एहसास के रिश्तों की है जो सम्बन्ध को प्रगाढ़ करते हैं. आज मुझे कश्मीर की जोहरा अफजल और बर्मिंगम, यू के की बहन शैल अग्रवाल की भी याद आयी जिनके पुत्र के विवाह में भी उन्होंने मामा बनकर मिलनी कराई थी. यादें बहुत हैं, फिर कभी साझा करूंगा अलिखित अनकही बातें.
आप सभी को रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएं.
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