सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

काटना जो चाहते हो बेड़ियाँ, खड़े होना तुम अगले चुनाव में -Suresh Chandra Shukla

 कुँए  सूख रहे हैं गाँव में
गाँव के स्कूल जुएँ दाँव में
 काटना जो चाहते हो बेड़ियाँ,
खड़े होना (तुम) अगले चुनाव में - शरद आलोक , ओस्लो, १८-०२-१३  





















ढो रही है चप्पलें, उसी के नंगे पाँव   हैं,
तप रही है धूप में, जिसने दिया  छाँव है। 

मैंने कल एक चित्र देखा जिसे ऊपर दे चुका  हूँ जिसमें एक महिला सर पर एक बड़ी टोकरी पर
चप्पलें लदी  हुई हैं। जबकि वह महिला
नंगे पाँव है.  उस पर एक कविता प्रस्तुत है, आशा है कि आपको
पसंद आयेगी। मैंने उस चित्र पर कल फेसबुक पर प्रतिक्रिया देखी तो वे हकीकत से दूर और राजनैतिक जागरूकता से तो कोसों दूर थी।  इसीलिये आज सुबह मैंने जो बस पर यात्रा करते हुए लिखी थी उसी को आपके साथ साझा किया  है।
नलों की टोंटियाँ बंद हैं, बिक रहा पानी गाँव में  
आज गरीब और विकासशील देशों में असमानता की दूरी बढ़ रही है.  अमीरों को कर देने की छूट हो रही है.  अभी भारत में भी पांच लाख तक कर में छूट देने की बात चल रही है जो   गरीबी को बढाने में मदद करेगी। नार्वे दुनिया के उच्च  रहन सहन  के स्तर में चौथा और पांचवा स्थान रखता है.
यहाँ बच्चों और वृद्धों का निशुल्क  इलाज और  दवा होती है.  यहाँ सभी को १२०००,- के ऊपर टैक्स  देना होता है.  मैं ३६ प्रतिशत टैक्स देता हूँ।  सरकार द्वारा टैक्स न लेने से उसमें मनमाना छूट देने से असमानता की खाई पाटने, देशवासियों को विशेषकर गरीब  बच्चों को निशुल्क  भोजन, दवा और शिक्षा नहीं दी जा रही है.  यह पूरे विश्व के लिए एक त्रासदी है.
भारत में यदि सभी को एक निजी नंबर जो जन्म तिथि के आधार पर जारी हो और उसके द्वारा देश विदेश के नागरिकों में फरक पता चलेगा और कोई भी किसी के नाम का अंगूठा या दस्तखत कराकर न तो कोई गलत तरीके से उसके नाम का धन खा सकेगा और न ही गलत तरीके से ले सकेगा.
यह सरकार के अधिकारियों को पता है.
जहाँ तक भाषा का प्रश्न है वह स्थानीय भाषा के विकास से हमारी आर्थिक उन्नति भी जुडी है. मैंने बहुत से भाषा सम्मेलनों में भाग लिया है और देखा है कि जिम्मेदार पदों पर रहने वाले
लोग अपनी भाषा के खिलाफ और विदेशी भाषा के पक्ष में इस तरह बिना तर्क के बोलते हैं जैसे वे
या तो विदेशी भाषा के एजेंट की भाँति  बात करते दिखाई देते हैं या उन्हें अपनी, स्थानीय भाषा
की महत्वता के बारे में पता नहीं है.  मैं निश्चय से यह कह सकता हूँ कि ये माननीय लोग पढ़ते नहीं हैं,
जिस बात के लिए उन्हें वेतन मिलता है उसके लिए भी ईमानदार नहीं है। किसी भी समाज और देश की तरक्की के लिए पहली शर्त इमानदारी, कठिन  परिश्रम और सद्भाव है.

रेस्टोरेंट, होटल  और फेरी पर चाय पिलाने वाले बहुत से  लोग  जो सारा दिन लोगों को चाय पिलाते हैं पर जब चाहे वह स्वयं चाय नहीं पी सकते।  विवाह- 
उत्सवों और बारातों में  ट्यूब लाईट (प्रकाश स्तम्भ) गमले लेकर चलते हैं। मैंने अभी हाल ही एक विवाह में सम्मिलित हुआ और बारातों में  ट्यूब लाईट (प्रकाश स्तम्भ) गमले कंधे पर रखकर चलने वालों से पूछा तो उन्होंने बताया कि उनमें अनेकों के घर में स्वयं बिजली से जलने वाली ट्यूब लाईट नहीं है.
लखनऊ में एक गावं के अध्यापक से उसके विद्यालय का हाल पूछा तो बताया कि  स्कूल के शिक्षार्थियों (बच्चों) के लिए आने वाला धन और सामग्री प्रधानाचार्य और ऊपर के लोगों के सहयोग से बाँट ली जाती है उसमें से थोडा अंश ही सही मद में प्रयोग होता है.

         Suresh Chandra Shukla, ओस्लो 

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