सोमवार, 19 मई 2014

करीबी परिचितों से मिलकर सुखद लगा था

करीबी परिचितों से मिलकर सुखद लगा था

आज एक तस्वीर मेरे हाथ लगी.  यह तस्वीर कुछ वर्ष पुरानी है. चित्र में बाएं से मेरे रेलवे में सहकर्मी जगलाल, हास्य कलाकार और केरीकेचर के लिए जानेमाने कलाकार विजय वास्तवा, मेरे अंग्रेजी  के के वी में अध्यापक  कृष्ण कुमार कक्कड़, नाटककार नौटियाल से हाथ मिलाते स्वयं मैं.
       





१८ अक्टूबर सन १९७२ से  २१ जनवरी १९८० तक लखनऊ  रेलवे   के सवारी और मालडिब्बे कारखाने में नौकरी की थी.
सन १९७६ से १९७९ तक  के के वी (बी एस एन  वी डिग्री कालेज) चारबाग लखनऊ में  बी ए  की शिक्षा प्राप्त की.

कुछ वर्ष पूर्व जब मुझे  दिसंबर के महीने में दर्पण नाट्य संस्था के नाट्य महोत्सव में चारबाग लखनऊ में स्थित रवीन्द्रालय में समाजसेवी भैयाजी के साथ जाने का अवसर मिला था तो कई बहुत करीबी परिचितों से मिलकर बहुत अच्छा लगा था.  

मेरे अंग्रेजी  के अध्यापक  कृष्ण कुमार कक्कड़ जी अक्सर मुझे (उलटा) गुरूजी  कहते थे.  विजय वास्तव मेरे मोहल्ले में होने वाले कार्यक्रमों में केरीकेचर प्रस्तुत करके लोकप्रियता प्राप्त कर चुके थे. विजय वास्तव जी मेरे मोहल्ले में के के पाण्डेय जी के भी परिचित थे  और  एक बहुत अच्छे फिल्म कलाकार भी थे. केरीकेचर के अतिरिक्त उन्होंने उत्तर प्रदेश के लिए फिल्मों में भी काम किया था जबकि वह रेलवे में कार्यरत थे.  

जगलाल मेरे रेलवे में सहकर्मी थे तथा मवैया, लखनऊ में रहते थे जहाँ मेरा राजनीति से जुड़ाव बढ़ रहा था और  छात्र युवा क्रांतिकारी संघ का महामंत्री बनने के बाद कुछ वर्षों तक अक्सर जाना होता था जहाँ एक पुस्तकालय में एक पत्र  का दानदाता भी था.     


 

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