सोमवार, 12 दिसंबर 2016

परायी जमीन पर सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla, Oslo, 12.12.16


परायी जमीन पर 
सुरेशचन्द्र  शुक्ल 'शरद आलोक'

अपने देश में अनजान पक्षियों की तरह 
अपना कोई खुद का मकान नहीं।
दिनोदिन जब पश्चिम में बढ़ रही है बेरोजगारी,
तकादा करते  भुगतान के लिए बिल,
बैंक के खाते में नहीं हैं पैसे?
कैसे चुकाऊं और कहाँ जाऊँ 
इससे उधेड़बुन में में 
परिवार का सदस्य बढ़ जाता है.
हर कोई दस्तक देकर नहीं आता.
हर दस्तक किसी आने की आहट नहीं होती।


आसमान में छाया धुंधलका,
जमीन पर जमी बर्फ  की फिसलन पर,
अब पैर नहीं जमते।
हाँ यह ओस्लो का एक मोहल्ला है वाइतवेत. 
 जहाँ बच्चे-बूढ़े और जवान
सभी के मध्य होकर गुजरता हूँ प्रतिदिन।
यहाँ आदमी दस साल पहले मर जाता है,
यहाँ अपेक्षाकृत आमदनी में कमी,
बन जाती है आर्थिक नमी.

यह धरती उनके लिए है परायी
जो अपना घरबार छोड़कर दूसरे देश में आये
प्रवासी या शरणार्ती कहललाये।
अपना देश छोड़कर कौन बाहर जाता है.
आदमी का आदमी से सच्चा नाता है.

suresh@shukla.no

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