बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

प्रवासी का अंतर्द्वंद्व - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'


प्रवासी का अंतर्द्वंद्व - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

बन्धुवर, मेरे नये संग्रह 'प्रवासी के अन्तर्द्वन्द' का लोकार्पण बड़ौदा और दिल्ली में हुआ.


एक "कविता साझा कर रहा हूँ.

जितने ऊँचे उड़ेे गगन में,
धरती पर विश्राम किया है.
हम तो पंछी हुए प्रवासी,
कभी नहीं आराम किया है.

डालर -पौंड लेकर आते,
प्रेम के दाने जब चुगने आते.
बहेलिये-अपने जाल बिछाते,
प्रवासी पंछी फँसते जाते.

निर्भर नहीं जो किसी कपाट के.
हम पानी पीते घाट -घाट के.
रोज-रोज हम नीड़ बनाते, 
घर के रहे न किसी घाट के,

कभी बवंडर आँधी-पानी,
नीड़ हमारा तोड़ रहे हैं.
जिस घर से निष्काशित हैं ,
अपना नाता जोड़ रहे हैं."

कोई टिप्पणी नहीं: