शुक्रवार, 22 मई 2020

संक्रमण से बड़ी है मजदूरों की समस्या - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

संक्रमण से बड़ी है मजदूरों की समस्या - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

कोरोना संकट जारी है 
संक्रमण के  प्रकोप से बड़ा है 
श्रमिकों का संकट। 

नौकरी चली गयी,
किराए का घर गया.
न कोई विश्रामघर न कोई भोजनालय।
अपने ही देश में श्रमिक हो गये प्रवासी,
नेता जैसे मुर्गियां दर के मारे 
अपने-अपने दरबे में घुस गये 

जिन्हे स्तीफा देना चाहिये 
वे राज्य कर रहे हैं 
श्रमिकों के अपने संगठन नहीं है?
उनकी आवाज उठाने वाले कम हैं 

जो आवाज उठाता है 
उसे नहीं सुना जाता है?
समझ में नहीं आ रहा क्या हो रहा है?
कौन है जवाबदेह 
गांधी के देश में आदर्शों का अकाल?
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एक महिला का पति मर गया,
स्मृति के समक्ष रो-रोकर हो रही बेहाल 
कोई सुनने वाला नहीं उसका हाल?
मुंबई में फंस गयी है?
लोकतंत्र के माया जाल में 
फंस गयी है?
न बस न रेल?
यह कैसी राजनीति का खेल?


सड़क हादसे में मारे गए 
बेटे का शव लेने आया पिता।
पर शव का नहीं कोई पता
वह कभी इधर कभी उधर भेजा जा रहा है 
शासन की नाकामी 
इंसानी रिश्तों पर पद रही भारी।


 अपने पिता को बैठाये बेटी 
अपने बच्चों को बैठाये 
रिक्शा खींचती एक युवती,
इक्कीसवीं शताब्दी की कह रही कथा.
शासन मौन, भवनों में कर रहे आराम।
कौन सुनेगा मजदूरों की व्यथा?


 रेल की पटरियों पर 
कहीं दुर्घटना में मृत
लाशों के बीच 
बिखरी रोटियाँ हैं.
कहीं मृत मजदूरों के झोलों में रोटियॉँ 

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मायूस लोगों की भीड़ है

वित्तमंत्री की निर्जीव घोषणा
पैकेज और लाखों रोजगार देने का शोर
और मजदूर भूखे रहने को मजबूर।
सत्ता नचा रही है 
हम नांच रहे हैं.
सवाल नहीं उठाकर 
खुद को गिरवी रख रहे हैं.


शहर के फुटपाथों और झुग्गियों से 
मजदूर नंगे पाँव लौट रहे हैं 
जरूरत है कि उनके घाव 
सत्ताच्युत होने पर उन्हें दिखयेंगे 
ताकि दुबारा सत्ता तक न आ पायें।

 

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