गुरुवार, 4 मार्च 2021

आत्म कथा लिखने का विचार 1- -सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 आत्म कथा लिखने का विचार:

 श्री बृजमोहन लाल शुक्ल  श्रीमती किशोरी देवी शुक्ल 

दिसम्बर सन 2014, दिल्ली 

दिसम्बर के महीने में सन 2014 को मैंने डॉ. कमल किशोर गोयनका जी को फोन किया। उन्होंने बताया कि मैं शाम को एक कार्यक्रम में आ जाऊँ वहाँ मैं उनके अलावा और लोगों से मिल सकूँगा। अतः मैं वहां पहुंच गया. 

 उस कार्यक्रम में एक पुस्तक का विमोचन होना था. उसमें बहुत से प्रतिष्ठित लोग सामिलित थे. बहुत से मशहूर राजनेता भी आसानी से देखे जा सकते थे. मैंने गोयनका जी को खोजना  शुरू किया। अनेक चिर परिचित मिलते रहे जिन्हें मैं बीसियों वर्षों से जानता था. मिलने वालों की एक शृंखला मिल गयी. जिसमें मेरे बहुत से परिचित लेखक, राजनेता, प्रकाशक, समाजसेवक, अध्यापक आदि थे. मैं वहां पर नार्वे से प्रकाशित और स्वसंपादित पत्रिका स्पाइल-दर्पण का यादगार अंक की बहुत सी  प्रतियाँ ले गया था, जो पत्रकारिता में अपने आप में एक अनूठा अंक था जिसमें मुझे बहुत से प्रसिद्ध नेताओं और विश्वप्रसिद्ध लोगों से शुभकामनायें प्राप्त हुई थीं. 

स्पाइल-दर्पण पत्रिका का नया अंक कैलाश सत्यार्थी पर था जिसमें मलाला पर भी कुछ पृष्ठ थे, इसके लिए कैलाश सत्यार्थी, मलाला, उसके पिता और चाचा जी सहित बहुत लोगों की शुभकामनायें मिली थीं. इस पर चर्चा कभी अन्य अवसर पर करेंगे।

स्पाइल-दर्पण की प्रति बहुत से लोगों को भेंट की।  वहाँ डॉ. सुरेश ऋतुपर्ण, डॉ. सुरेश गौतम, डॉ. कृष्ण दत्त पालीवाल, डॉ. कमलकिशोर गोयनका, श्री लाल कृष्ण आडवाणी, श्री श्याम मनोहर जोशी, डॉ. हर्षवर्धन और अनेक लोग थे. मैंने  सभी को नमस्ते करके अभिवादन किया और स्पाइल पत्रिका भेंट की. 

यहाँ गोयनका जी ने कहा कि मुझे अपने संस्मरण और पत्र लिखकर डाक से भेजते रहना चाहिए।  नार्वे में और संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय राजदूत निरुपम सेन जी ने  कहा था कि मुझे आत्मकथा लिखनी चाहिए और नार्वे में मेरे साहित्य के अलावा अपने नार्वे में सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियों को समाहित करते हुए आपबीती लिखनी चाहिए। 

2008 में श्री कैलाश सत्यार्थी जी ने भी कहा था कि मुझे अपनी आत्मकथा लिखनी चाहिये।  इस सम्बन्ध में नार्वे में प्रवासी शायर और राजनीतिज्ञ सईद अंजुम ने भी मुझे कहा था, "मैं बीमार हूँ, शुक्ला जी आप एक किताब जरूर लिखें कि हम पहली  पीढ़ी के राजनैतिज्ञ और लेखक ने यहाँ कैसे अपने संघर्ष किये।" मैंने सर हिला दिया था. 

मेरे पुत्र अनुपम और अर्जुन भी दो वर्षों से कह रहे हैं कि मुझे अपनी आत्मकथा लिखनी चाहिए. बड़ा बेटा अनुराग हमेशा मेरी सहायता कम्प्यूटर में यदि कुछ सहायता हो तो कर देता है, जिसने मेरी पहली नार्वेजीय भाषा की तेली फिल्म में फोटोग्राफी (फिल्मांकन) और सम्पादन किया था.

बेटी संगीता जो नार्वे में भारतीयों की दूसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती है उसका भी नार्वे में हिन्दी स्कूल खोलने में बहुत योगदान है, उसने कुछ कवितायें भी लिखी हैं, जो यहाँ एक युवाओं की पुस्तक में संगृहीत है. संगीता ओस्लो की युवा महिलाओं में खासी पैठ रखती है. भारतीय, प्रवासियों और नार्वेजीय समाज के मध्य सामाजिक और सांस्कृतिक सेतु बनाने के लिए उसे याद किया जाता रहेगा।

6 जनवरी 2015 को इण्डिया इंटरनेशनल, दिल्ली में 

मैं 6 जनवरी 2015 को सुबह दिल्ली में था. मैंने डॉ. कमल किशोर गोयनका को फोन किया कि मिलना चाहता हूँ उन्होंने मुझे शाम पांच बजे इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर, दिल्ली में आमंत्रित किया।  मैंने जोरबाग में डॉ. सत्येन्द्र कुमार सेठी जी और डॉ. सुरेंद्र कुमार सेठी जी के निवास पर चाय पी और बाद में टैक्सी लेकर इंटरनेशनल सेंटर पहुंच गया. 

मित्रवत और बड़े मनमौजी और अख्खड़ स्वभाव के श्री नरेन्द्र कोहली जी के 75वें जन्मोत्सव में सम्मिलित हुआ. 

अंदर आते ही  कोहली जी, हिन्द पॉकेट बुक्स के शेखर, कादम्बिनी के जेमिनी जी, अंदर आते ही मिल गये. 

आपस में  नमस्ते हुई. सबसे पहले एक चित्र खींचा। वहाँ डॉ.सुरेश ऋतुपर्ण सपरिवार आये थे, लखनऊ की डॉ. सुल्ताना और बहुत से लोग मिले.  गोयनका जी के साथ की कुर्सी  बैठ गया. 

बहुत से प्रकाशक जिस तरह बड़े उत्साह के साथ यहाँ अपने प्रिय लेखक कोहली जी पर और उनकी पुस्तकें लेकर  आये थे, जिन्हें भेंट किया गया था.   कार्यक्रम शानदार था परन्तु जब 6 जनवरी को डॉ. नरेन्द्र कोहली जी के जी के 80वें जन्मदिन पर  प्रकाशक लोग आये पर 75वें जन्मदिन वाला उत्साह नहीं नजर रहा था. 

जिस विचारधारा के लिए नरेन्द्र कोहली जी ने सारा जीवन दिया उनका कोई बड़ा नेता कोहली जी के 80 वें जन्मदिन पर वहां बधाई देने नहीं आया था. यहाँ मुझे उन्हें डॉ. हरी सिंह पाल के साथ उनको पुष्पगुच्छ भेंट करने का मौका मिला था. यहाँ श्री  अनिल शर्मा (जोशी), प्रेम जनमेजय, हरीश नवल, आशीष खांडवे, गायिका मालिनी अवस्थी, अजय विद्युत्  आदि मौजूद थे.  

यहाँ भी मेरे मन में  घर करने लगा था कि मुझे  आपबीती यानि आत्मकथा लिखनी चाहिए।  कार्यक्रम को देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ था.

4 मार्च 2021 को अपनी  आत्मकथा का मंथन -1 

दिसम्बर 2019 को दिल्ली आया तब शाहीनबाग, दिल्ली में युवाओं आंदोलन चल  रहा था. उसके  बारे में मेरे  पत्रकार मित्र शेषनारायण सिंह और अन्य ने अपने लेख  पढ़ने को दिए. शाहीन बाग़ के लिए तिपहिया टैक्सी को मुश्किल से राजी किया।  

मुझे जामिया मिलिया (विश्वविद्यालय) में पहली  आमंत्रित  कराया था वरिष्ठ और प्रसिद्ध  उर्दू इतिहासकार मित्र डॉ. गोपीचन्द नारंग जी ने. नारंग मेरी दोस्ती ओस्लो में हुई थी. वह  बहुत उदार और बड़े विद्वान थे. हम दोनों ने अनेक कार्यकर्मों में  डेनमार्क में साथ-साथ भाग लिया और साथ सम्मानित भी हुए थे. उनके साहित्य अकादमी में अध्यक्ष बनने पर  मिलकर बधाई देने गया था तब मेरे साथ डॉ विक्रम सिंह जी थे. नारंग जी के घर जाकर  साक्षात्कार भी लिया था जो  रहेगा। कभी आगे जिक्र करूंगा। 

जनवरी 2020 को पुस्तक मेला मेरे लेखन के लिए टर्निंग प्वाइंट था. यहाँ फिर डॉ. कमल किशोर गोयनका जी के साथ अनेकों प्रकाशकों के पास गया, ढाई घंटे घूमा।  प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा और डॉ. दीपक पांडेय सहित अनेक  प्रकाशक और लेखक मित्रों से मिला. केंद्रीय हिन्दी निदेशालय के कार्यक्रमों सहित अनगिनत पुस्तक लोकार्पण और चर्चा में सम्मिलित हुआ और मंच साझा किया।  डॉ. लहरी राम मीणा की पुस्तक 'इस उम्मीद से निकला' के लोकार्पण में मुझे मुख्य अतिथि बनाया था जिसका प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ ने किया था. 

यहाँ निश्चय  किया कि अब सार्थक, ठोस और खोजपरक और अध्ययन के साथ लेखन करना है. जबकि मुझे विदेशों में रहकर हिन्दी लेखन का 40 वर्षों के अभूतपूर्व अनुभव ने समृद्ध किया है. 

मैंने  40 सालों से नार्वे (विदेश) में लेखन और हिन्दी पत्रिका स्पाइल-दर्पण का सम्पादन किया है, जिससे बहुत कुछ सीखने को मिला और मिल रहा है.

मैं 4 मार्च 2021 को  रात से आत्मकथा लेखन का पहला स्वरूप शुरू कर रहा हूँ. 

महात्मा गाँधी आत्मकथा बहुत प्रेरणात्मक है. अभी हाल ही में ही में पूर्व राष्ट्रपति बाराक ओबामा की पुस्तक काफी  चर्चित हुई है. 50 साल पहले  हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा का पहला खण्ड 'क्या भूलूं क्या  याद करूँ आया था. बच्चन की आत्मकथा के चार खण्ड  चुके हैं और हर खण्ड के अनेक संस्करण प्रकाशित हुए और चर्चित हुए.

लन्दन के विद्वान शिक्षक और साहित्यकार रुपर्ट स्नेल ने बच्चन की  चारो खण्डों का अंग्रेजी में अनुवाद किया था, जिनके साथ लन्दन और मारीशस में हिन्दी सम्मेलनों  में साथ-साथ भाग लेने का अवसर मिला था. 

मेरे मित्र हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान लेखक और शिक्षक वेदप्रकाश  की आत्मकथा के भी चार खण्ड प्रकाशित हुए जो  हिन्दी  बड़ी उपलब्धि है. 

बटुक जी ने इन चार खण्डों में लिखी आत्मकथा में  ब्रिटेन और अमेरिका में 50 सालों के  अनुभवों को साझा किया है जो बहुत सराहनीय है.  हम बटुक जी के शतायु होने की कामना कामना करते हैं. आजकल बटुक जी मेरठ में रह रहे हैं रह रहे हैं. 

10 फरवरी को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में जन्म लिया एक गरीब मध्यम ब्राह्मण परिवार में. तब से लेकर 26 साल  भारत  गुजारे हैं. 

बचपन, परिवार, बेसिक शिक्षा,  हाई स्कूल, इंटरमीडिएट, बी ए, श्रमिकल शिक्षक, आदि से लेकर आर्थिक, सामजिक और साहित्यिक संघर्ष यात्रा संभवता अनेक रंगों से भरी पड़ी है. 

26 जनवरी 1980 से  ओस्लो, नार्वे में  भी  बीत गए हैं. 

आइये धीरे-धीरे अपने  के नाटक परदे  डोर खींचते हैं. आप देखिये  समय में परत-दर-परत, एक के बाद एक दृश्यों का पाठ.  पढ़ने के बाद हमारे अनुभव आपके हो जाएंगे।

 -सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' 

 

 

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