बुधवार, 31 मार्च 2021

इस बार होली में - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' This time, a poem by Suresh Chandra Shukla

 

 

इस बार होली में

इस बार होली में बहुत शर्म आयी.
जब किसानों की उगाई गेहूँ की बालियाँ
होली पूजन में बहुत काम आयीं।
आंदोलनरत किसानों की याद न आयी।

संवेदना मरने से पहले शर्मायी
दोहरे चरित्र में लिपट रोयी।

हाथ पर हाथ रखकर,
किसको निमंत्रण दे रहे हैं?
हम क्या लोकतंत्र में
बहरे हो गये हैं?
महँगाई, बेरोजगारी और निजीकरण,
गरीब देश में लकुआ मार रही.
हम न रो रहे, न हँस रहे हैं
अपने घर में सेंध लगा रहे हैं।

व्यवस्था इमरजेंसी वार्ड में आ गयी है,
सॉंस नहीं ले पा रही है।
हम खाली सिलेंडर से
मरीज को आक्सीजन दे रहे हैं।

सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

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