सोमवार, 19 अप्रैल 2021

हे पथिक न निराश हो - A poem by Suresh Chandra Shukla

 

हे  पथिक  न   निराश  हो

हे  पथिक  न   निराश  हो, अँधेरा  छटने  वाला  है.
दीप  कुछ  देर  और जल, तम   न  रहने  वाला  है।
शाख  से  गिरे  पात - पात, नयी कोपलें निकल रहीं,
यह ऋतुओं का खेल है, नया  मौसम  आने  वाला है।

दर्द की कैसी बयार है, विजय समीप,  न  हार मान,
ठहर  गए  दुःख  मेघ क्यों, बरस-बरस न कर गुमान।
बेटी - बेटे  कुछ  और  ठहर,  तूफ़ान  जाने  वाला  है,
हे,  पथिक!  न  निराश हो,  अँधेरा  छटने  वाला  है। 

ओस्लो, 19.04.21

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