बाएँ से मो रियाज गोन्दल, पञ्जाबी के प्रवासी कवि राय भट्टी, इंदरजीत पाल, सुखदेव सिद्धू, सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' अशरद भट्ट और जान दित्ता दीवाना होटल प्लाजा में शरद आलोक के अभिनन्दन ग्रन्थ की चर्चा करते हुए.
शरद आलोक के अभिनन्दन ग्रन्थ पर चर्चा और सम्मान
ओस्लो के पञ्जाबी शायरों की तरफ़ से सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' पर छपे अभिनन्दन ग्रन्थ पर चर्चा हुई और कवि गोष्ठी संपन्न हुई। जिसमें राय भट्टी, इंदरजीत पाल, सुखदेव सिद्धू , मो रियाज गोन्दल, खालिद थथाल, जान दित्ता दीवाना, एडवोकेट अरशद बट्ट और सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने अपनी रचनाएं पढ़ी राय भट्टी ने अपने संस्मरण सुनते हुए कहा की यह ग्रन्थ प्रवासी साहित्य का अहम हिस्सा है और अनेक भाषाओँ में छपना अपने आप में बड़ी बात है। और इंदरजीत पाल ने कहा कि जो धन से दूर उसकी कीमत को नकार कर साहित्य रचना करना उसी तरह है जैसे शरद आलोक ने लिखा है 'नहीं लेंगे वह डालर जिससे मैला होता हो कालर।'
ओस्लो के पञ्जाबी शायरों की तरफ़ से सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' पर छपे अभिनन्दन ग्रन्थ पर चर्चा हुई और कवि गोष्ठी संपन्न हुई। जिसमें राय भट्टी, इंदरजीत पाल, सुखदेव सिद्धू , मो रियाज गोन्दल, खालिद थथाल, जान दित्ता दीवाना, एडवोकेट अरशद बट्ट और सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने अपनी रचनाएं पढ़ी राय भट्टी ने अपने संस्मरण सुनते हुए कहा की यह ग्रन्थ प्रवासी साहित्य का अहम हिस्सा है और अनेक भाषाओँ में छपना अपने आप में बड़ी बात है। और इंदरजीत पाल ने कहा कि जो धन से दूर उसकी कीमत को नकार कर साहित्य रचना करना उसी तरह है जैसे शरद आलोक ने लिखा है 'नहीं लेंगे वह डालर जिससे मैला होता हो कालर।'
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