रविवार, 8 नवंबर 2009

हबीब तनवीर नाटक की दुनिया में बेमिसाल रंगकर्मी-शरद आलोक

जीवन की आस्थाओं को आम आदमी तक पहुंचाने वाले हबीब तनवीर- शरद आलोक





सुप्रसिद्ध रंगकर्मी: नाटककार और कलाकार हबीब तनवीर के निधन से एक ऐसा स्थान रिक्त हुआ है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। रंगमंच से जुडना, आम आदमी और जन-जन तक अपने संदेश को पहुँचाना, स्वयं रंगमंच के लिए हर तरह का कार्य करना सिखाया है हबीब तनवीर जी ने। ८५ वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। वह ३ सप्ताह से बीमार थे।
एक सितम्बर १९२३ में रायपुर में हुआ और हबीब तनवीर ८ जून २००९ को हम सबसे विदा हो गए। आज पांच महीने बाद उनकी याद में कुछ शब्द लिखने पर मजबूर यह रंगकर्मी लेखक स्वयं जानता है कि इस मार्ग में कितनी रुकावटें हैं। पर कितना सुकून मिलता है जब एक कथा पर सोचते हुए उसे नाटक अथवा फ़िल्म के लिए पटकथा लिखने और उसे फिल्मांकन के बाद होता है। ऐसा लगता है कि यह केवल विचारों में नहीं हुआ, लेखन के समय केवल अनुभव नहीं हुआ बल्कि वह आने वाले समय में कुछ समय यादों में भी सुमार किया जाए।
मुझे इस अवसर पर अपने एक रंगकर्मी मित्र बशीर कि याद आ रही है जो ऐशबाग लखनऊ कि पुलिस चौकी के समीप रहते थे। उसके पहले वह ऐशबाग रामलीला मैदान के पीछे बसी झोपडी में रहते थे। वह नौटंकी में विदूषक की भूमिका निभाते थे। बशीर को मैंने अन्तिम बार लगभग १२ वर्ष पहले देखा था। उनकी आयु ६० वर्ष से ऊपर थी। काश कभी भविष्य में लखनऊ में कोई ऐसा लेखक और रंगकर्मी भवन बने और उसमें हर वर्ग के हर कोने से रंगकर्मी और लेखक आयें और एक दूसरे के समीप आयें और मिलकर दुखदर्द दूर करें।
हबीब तनवीर ने अनेक नाटकों कि रचना कि जिसमें 'लाहौर नहीं वेख्या, वो जन्म्या नहीं', 'आगरा बाजार' और 'चरणदास चोर ' जैसे कई प्रसिद्ध नाटक दिए।
उन्होंने कई हिन्दी फिल्मों में काम भी किया था। हाल ही में सुभाष घी कि बनी फ़िल्म 'ब्लैक एंड वाइत' काम किया था। उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था।

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