रविवार, 13 फ़रवरी 2011

मुंबईया वादे, पूना की शैली, भूल कभी न पायेंगे. सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

मुंबईया वादे, पूना की शैली,
भूल कभी न पायेंगे।
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

आप अपनों से बात करें.
चंदा से दिन को रात करें,
वसंत में जब सावन होगा
उस पल का इन्तजार करें,

मौसम सा हम कपड़े बदलें
बादल जो भी आयें जाएं
उनको सपनों में ना लायें,
अपनों से अपनापन पायें.

कुछ खास छिपाना होता है,
जीवन अनजाना होता है,
शहद-गन्ने के रस का
असर बेगाना होता है।

हम भोले हैं अनजाने हैं,
मस्ती में झूमें दीवाने हैं।
दीपक लौ में जलकर
नयनों में काजल डाले हैं॥

पंछी से एक मुसाफिर को
चुनकर तिनका तो जाने दो,
मेरी किस्मत का दाना
मदमस्त हवा को आने दो॥

मुझको अब न कैद करो
पिंजरे से बाहर आने दो।
तूफानों से लड़ लड़ने वाली,
मैं पंछी हूँ उड़ जाने दो॥

आँखों के तारे बने नहीं
नयनों का तिनका बने यहाँ।
बंधन में बंधा न प्रेम यहाँ,
मिलकर छूटे हैं लोग यहाँ॥

अन्तरमन से मिलने वाले
क्षण भर में वह दे जाते हैं
रहती है पीड़ा साथ सदा
सुख क्षणभंगुर हो जाते हैं।

न करता मुंबईया वायदे
न पूना की फ़िल्मी शैली,
कभी सुगन्धित कलिका थी
पांवों से मस्तक तक फैली॥
इबसेन की बात सुनायेंगे
२२ -२३ फरवरी को शिवाजी विश्वविद्यालय में डॉ। पदमा पाटील के संयोजन में एक अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक गोष्टी हो रही है उसमें मैं भी भाग लेने जा रहा हूँ जहाँ इबसेन की बातें सुनाऊंगा।


वह धुल धूसरित मलिका
फिर भी स्वतन्त्र मन वाले हैं।
परदे में दुल्हन जैसे ही,
प्यालों पर पर्दा डाले हैं॥
ब्योर्नसन की बात बताएँगे

नार्वे के राष्ट्रीय साहित्यकार ब्योर्नस्त्यार्ने ब्योर्नसन

समय को मत आजमाओ तुम,
अभिनय तुम किसे सिखाओगे?
दुनिया के इस नाटक में,
जब विदूषक तुम बन जाओगे।।

ढाई आखर गर पढ़ा सको,
हम ऋणी सदा हो जायेंगे
शरद आलोक मिटना जाने
बालू का ढेर बनायेंगे।

जो अन्दर जितने अच्छे हैं,
बाहर उतने मतवाले हैं।
बाहर से कितने उजले,
जो अंतर्मन के काले हैं?

चित्रों से प्याले दूर रहें,
जीवन में चाहे पास रहें,
ये तो बस इतने अच्छे
नीबू शरबत की बात करें॥

दे ना सके पल-दो पल
तुम साथ कहाँ निभाओगे।
पोथी की शिक्षा जीवन में,
दो पल में आग लगाओगे॥

आओ मिल जुलकर बैठें
कुछ तुम मेरे, कुछ हम तेरे।
पिंजरे से उड़कर देखो,
ये सारा गगन तुम्हारा है॥

वायु ने घुंघरू बजाये हैं,
आकाश से बादल गरजे हैं।
तुम भीग न पाए तुम जानो,
मेघा खुलकर तो बरसे हैं॥

महा शिवाजी की धरती
हम कोल्हापुर भी जायेंगे,
गौरव इतिहास की गाथा
का प्रसाद वहाँ से पायेंगे॥

शिवाजी का पौरुष देख वहाँ
हम नतमस्तक हो जायेंगे
इबसेन को भी गोहरायेंगे,
ब्योर्नसन की बात बताएँगे॥
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
१३.०२.११ , ओस्लो, नार्वे

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