शनिवार, 9 अप्रैल 2011
८ अप्रैल ओस्लो - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
नार्वेजीय लेखक मित्रों के साथ ओस्लो में आज मौसम अच्छा था। दिन में तेज हवाएं चलती रहीं। ग्रीष्म के आगमन के पूर्व मानों बसंत आया हो। सड़कों पर से बर्फ हट चुकी है। कहीं कहीं सड़कों के किनारे बर्फ के ढेरों का आकर तेजी से कम हो रहा है। कहीं कहीं रास्ते और सड़कों की सफाई का कम हो रहा है। मेरे मित्र राज कुमार भट्टी घर आये। उनके साथ मैट्रो लेकर नेशनल थिएटर स्टेशन पर उतर कर राजा के प्रसाद होते हुए लिटरेचर हाउस जा रहे थे। रास्ते में राजमहल के सामने मेरे एक अन्य मित्र प्रोफ़ेसर असीम दत्तोराय जी मिल गए। थोड़ी देर तक साहित्यिक और सांस्क्रतिक बातचीत होती रही। जहाँ लेखकों की बैठक होनी थी। थोड़ी देर हो गयी थी क्योंकि पत्रिका स्पाइल -दर्पण का कुछ सामग्री तैयार करनी थी। मुझे स्मरण है दिल्ली में रहने वाले लेखक और प्रसिद्ध आलोचक डॉ कमल किशोर गोयनका जी ने मुझसे वर्षों पहले कहा था की मुझे अपनी डायरी लिखनी चाहिए। अतः उनका स्मरण हो आया और डायरी लिखने बैठ गया। आज जहाँ मेरा जीवन खुली किताब की तरह है। फिर उसे आप पाठकों तक अपनी बात और दिनचर्या साझा कर रहा हूँ। लेखकों की बैठक में लगभग सौ नार्वेजीय लेखक उपस्थित थे। उसमें मेरे एक लेखक मित्र २० वर्ष बाद मिले जिन्होंने मेरे नार्वेजीय भाषा के काव्य संग्रह 'Mellom linjene' (पंक्तियों के मध्य ) की समीक्षा ओस्लो के समाचार पत्र VG (वेरदेन्स गंग) में २००५ में लिखी थी। मुझे स्मरण है की दिल्ली के मशहूर कार्टून बनाने वाले लेखक सुशील कालरा का साक्षात्कार दिलाने गया था। वे लोग कुछ विशेष होते हैं। आप चाहे जितना भी सहयोग उन्हें दीजिये वह आपको कम ही पत्र लिखते हैं और धन्यवाद भी नहीं देते है। इनमें अपवाद भी हैं। लेखक बैठक और बाद में मिलना-जुलना पार्टी चलती रही। साहित्यिक और निजी विचारों का आदान -प्रदान हुआ। दो लेखकों ने बताया की उनकी पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद छप चुका है। मुझे जानकार ख़ुशी हुई की हम लीग नार्वे में ठीक दिशा में कार्य कर रहे हैं। यहाँ संगीता शुक्ल सिमोन्सेन का हिंदी स्कूल जिसका उद्घाटन उदघाटन प्रो (डॉ) निर्मला एस मोर्य ने किया था बहुत अच्छा चल रहा है। चित्र में बीच में लेखक संगठन की अध्यक्ष इन्ग्विल और अन्य लेखक मित्रों के साथ
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