सोमवार, 12 जून 2017

'Who once sold tea at the station He is now selling stations' A poem by Suresh Chandra Shukla जो कभी स्टेशन पर चाय बेचता था वह अब स्टेशन बेच रहा है सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', Oslo, 13.06.17

जो कभी स्टेशन पर चाय बेचता था 
वह अब स्टेशन बेच रहा है
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

बेटा तुम नेता नहीं बनना, प्रतिनिधि बनना।
एक लड़का वह जो चाय बेचता है
वह खुद चाय नहीं पी पाता।

एक वह लड़का जो स्टेशन पर चाय बेचता था.
आज वह स्टेशन बेच रहा है.
एक साबरमती के संत थे बापू
उन्होंने देश को आजाद कराया।
दूसरे साबरमती के संत ने
पहले गाँधी जी को चरखे से हटाकर
खुद कलैण्डर में अपनी तस्वीर लगाई
अब वही साबरमती के सन्त
देश के 23 स्टेशन बेच रहे हैं,


कितने महान हैं हमारे रहनुमा।
उन्हें पूजीपतियों को बेचकर
देशवासियों से स्टेशन मुक्त करा रहा है.
बनिया कौन है जिसने देश को आजादी दिलाई
या जिन्होंने स्टेशन बेच कर उन्हें मुक्त कर दिया।
अब आगे किसकी बारी है?
बेटा, मेरे मरने पर तुम मुझे
स्वचालित बिजली के यंत्र (इलेक्ट्रिक क्रिमेशन )
में दाह संस्कार करना।
पर्यावरण को संभाल रखना।
नदियों में हमारे मृत शरीर
धर्म के नाम पर हम लोग बहाते हैं.
उस पानी को
इंसान और जीव जंतु पानी पीते हैं.

बेटा तुम मुझे कुछ कर्ज दे सकते हो
तो आज वायदा करो!
अपने बच्चों को अच्छे नागरिक बनाना।
मंदिर-मस्जिद में समय देने की जगह
गरीबों को निशुल्क पढ़ाना।
धार्मिक स्थानों के निर्माण की जगह स्कूल बनवाना।
गोशाला की जगह इंसानों के लिए
गर्मी और सर्दी में सरायखाना बनवाना।
जिंदगी जीना।
जितना हो सके खुद हंसना
और दूसरों को हँसाना।

एक बार मिलटा है जीवन,
अपनी मर्जी से अपने उसूल बनाना
जिनसे मानवता चमके।
मैं गर्व कर सकूँ,
कि जहाँ तेरे जैसे भारतीय होंगे
वहां किसी भी देश-धर्म का आदमी आये
तुमसे मिलकर मानवता पर गर्व करे.
पाखण्ड से दूर -दूर
दिखावा न करना।
कभी भी नेता नहीं, प्रतिनिधि बनना।

कोढ़ियों के घाव धोना,
मंदिर-मस्जिद पर चाहे फूल चादर नहीं चढ़ाना।
पर लावारिस अजनबी लाश को कन्धा देना।
अपने विचारों को पानी देना और
अपने अंदर पनपते भेड़िये से
किसी की लाज लुटते देख उसे बचाना
पर किसी अमानुष सत्ताधारी को,
कभी चाय न पिलाना।
suresh@shukla.no

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