रविवार, 5 नवंबर 2017

सरदार पटेल के ज़माने में भी परिवारवाद था।-Suresh Chandra Shukla


सरदार पटेल का परिवार राजनीति से दूर नहीं  रहा
योग्यता और चुनाव के आधार पर एक परिवार के सदस्य एक या अधिक व्यसाय अपनाने के लिए स्वतन्त्र है इसे परिवार वाद नहीं कहा जायेगा
 नीचे के चित्र में मनीबेन पटेल अपने पिता सरदार पटेल के साथ 















  

सरदार पटेल के पुत्र दयाभाई पटेल 

 
मणिबेन पटेल कांग्रेस से दो बार लोस सदस्य और एक बार रास सदस्य रहीं, बाद में भारतीय लोक दल में शामिल हुईं, १९७७ में जनता पार्टी से लोस पहुंचीं
दयाभाई पटेल कांग्रेस से तीन बार राज्यसभा गये
मैं सरदार पटेल के परिवार के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं रखता हूं लिहाजा जब प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द कोलीशन ईयर्स’ के पहले अध्याय के दूसरे पैरा में लिखा मिला कि १९७१ में जब प्रणब दा राज्यसभा के सदस्य बने उस समय राज्यसभा में सरदार पटेल के पुत्र दयाभाई पटेल व पुत्री मणिबेन पटेल भी थीं, आश्चर्य हुआ। इस समय सरदार पटेल को लेकर तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं और उन बातों को सुनकर यह सहज ही विश्वास हो जाता है कि १९५० में सरदार पटेल की मृत्यु के बाद उनकी संतानों का राजनीति से कोई ताल्लुक नहीं रहा होगा। सरदार पटेल की दो संतानें थीं, एक बेटी और एक बेटा। बेटी मणिबेन पटेल तीन बार लोकसभा सदस्य और एक बार राज्यसभा सदस्य रहीं। बेटा दयाभाई पटेल तीन बार राज्यसभा सदस्य रहे।
सरदार पटेल की मृत्यु के बाद हुए पहले आम चुनाव में उनकी पुत्री मणिबेन पटेल कैरा साउथ से और दूसरे आम चुनाव में आणंद से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा सदस्य चुनी गईं। तीसरे आम चुनाव में मणिबेन पटेल स्वतंत्र पार्टी के कुमार नरेंद्र सिंह रंजीत सिंह महिदा से आणंद सीट पर २२७२९ वोटों से चुनाव हार गईं। चुनाव हारने पर कांग्रेस ने १९६४ में उन्हें राज्यसभा भेजा जहां वह १९७० तक रहीं। कांग्रेस के विभाजन के समय वे कांग्रेस संगठन में आईं। मणिबेन बाद में भारतीय लोकदल में शामिल हो गईं। १९७७ के आम चुनाव में वह मेहसाणा से जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतीं। इसके बाद वह चुनावी राजनीति से दूर रहकर गुजरात विद्यापीठ, वल्लभ विद्यानगर, बारदलोई स्वराज आश्रम, नवजीवन ट्रस्ट आदि से जुड़ी रहीं। १९९० में उनकी मृत्यु हुई।
यही नहीं, सरदार पटेल के पुत्र दयाभाई वल्लभभाई पटेल १९५८ से तीन बार राज्यसभा सदस्य रहे। पहली बार १९५८ से १९६४ तक, दूसरी बार १९६४ से १९७० तक और तीसरी बार १९७० से १९७३ (मृत्यु) तक वे राज्यसभा में रहे।

राजेन्द्र तिवारी जी की वाल से साभार

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