नार्वे में १९४० से १९४५ तक नाजी क्रूर तानाशाह हिटलर का शासन रहा। नार्वे की जनता का साँस लेना दूभर हो गया था। इन वर्षों में एक शांतिप्रिय देश बर्बरता का शिकार हो गया था। आज ८ मई को नार्वे की जनता ने आजादी दिवस मनाया। आज जब मैंने ओसलो नगर में कुछ बुजुर्गों से बातचीत की तो उनकी आँखें भर आयीं। उनका कहना था कि ईश्वर किसी को भी गुलामी न दें। युवाओं का कहना था इक उन्हें गुलामी का कोई अनुभव नहीं है इसलिए उनका इस दिवस से कोई ज्यादा सरोकार नहीं है। वह क्या जाने आजादी की कीमत जिसने गुलामी नहीं देखी है। मेरी कविता की पंक्तियाँ हैं: " न होली के रंग हैं, न दीवाली के धमाके। आई थी आजादी, खूब धूम मचाके।"
दूसरी बधाई है इसराइल देश की ६० वीं वर्षगांठ पर शुभकामनाएं
इसराइल की आजादी मनाना, तब बहुत आँसू भी बहाना।
स्वर्णिम सपनों के महल में हवामहल बनाना।
चंदन भी जलता है जब चिता पर , क्या दिया जलना क्या अगरबत्ती जलना। न खुशियों में खुशी है, न दुःख में ही मातम। इसराइल महकता रहे , हम भी महकते रहें। न दुश्मन बुरा है, न दोस्त कुछ खास। आज दो कदम चलें हैं। कल जीवन भर का साथ। शुभकामनाएं आपको - "शरद आलोक"
2 टिप्पणियां:
हमारी भी शुभकामनायें.
जानकर खुशी हुई है मेरी और से भी बधाई
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