मंगलवार, 23 मई 2017

'जो न भूला वह याद करूँ' डायरी -23.05.17, ओस्लो Memory-Diary by Suresh Chandra Shukla, Oslo

 'जो न भूला वह याद करूँ'   डायरी -23.05.17, ओस्लो Oslo

बाएं से भारती सिंह, एक साहित्य प्रेमी पीछे खड़े है, स्वयं मैं (सुरेशचन्द्र शुक्ल ), प्रोफ संतोष तिवारी और प्रसिद्द कवि सूर्य कुमार पाण्डेय लखनऊ पुस्तक मेला में.

जब मैने 1970 में पुरानी श्रमिक बस्ती ऐशबाग में समाज सेवा शुरू की थी तब चाहता था कि हर बस्ती के नुक्कड़ पर या मध्य में रिसोर्स सेन्टर बने जहाँ अनपढ़ को साक्षर, स्कूली बच्चों को होमवर्क, महिलाओं के लिये सिलाई-बुनाई और नौकरी के लिये प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी दी जाये.
बच्चों और युवा लोगों को स्काउट एवं गाइड प्रशिक्षण.
महिला शक्ति कीर्तन भजन करें पर आज समय के साथ चुनौतियों से निपटने लिए साथ-साथ मिलकर बहुत कुछ करना होगा. पुरानी पीढ़ी से कुछ नहीं होना क्योंकि इस पीढ़ी ने न बदलना है अधिकांश लोग अभी भी दकियानूसी विचार के हैं.
इनके समाधान आज के नयी बदलते परिपेक्ष में खरे नही उतरते.
समय -समय पर अपने समूह लेकर साथ-साथ जैसे 8 मार्च को लखनऊ की सभी महिलाओं के साथ अपनी मांगे, विचार और घर बाहर की समस्या जो सबकी हो उसे सामूहिक मंच पर रखें और उत्सव की तरह साथ-साथ मनायें. तब पुरुष भी साथ दें.
1 मई को सभी कामगर और किसी भी प्रोफ़ेशन में काम करने वाले लोगों का संगठन सम्मिलित हो और अपनी रोजमर्रा की परेशानियों की मांग रखें. ताकि आधारभूत समस्या का हल हो. एकता में शक्ति है और बहुत सी समस्यायें आपस में मिलने से ही हल हो जाती है.
,यह बस्ती नहीं हस्ती है,
जहाँ कभी दुर्गा भाभी, शचीन्द्रनाथ बक्शी
अटल बिहारी आते थे,
शरद आलोक सांस्कृतिक मशाल जलाते थे
रमाशंकर भारतवासी और एल बी वार्षनेय मेला जमाते थे
जहाँ बृजमोहन कोआप्रेटिव में मन्त्री थे.
श्री खरे और दिनेश श्रीवास्तव स्काउट एवं गाइड बनाते थे
पापा जी ईमानदारी सिखाते थे
उनके लगाये वृक्ष पर मन्दिर बन गए हैं
चौराहे पान-चाट मसालों के खोमचो से ढक रहे हैं
बाहर से लोग यहाँ आकर अपनी -अपनी दुकाने चला रहे हैं
हम लोगों के लिये कितना कर रहे हैं?
तब से आज तक वहीं खड़े हैं
जहाँ थे वहीं अड़े हैं.,' - शरद आलोक, ओस्लो, 23.05.17

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