रविवार, 20 नवंबर 2016

अगर तरक्की करनी है 
तो कतार में लगना होगा
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

समय आदि और अंत है.  
समय की परिधि अनन्त है।
जो समय मुट्ठी में बाँधे ,
समय का असली सन्त  है।।

हर पग बढ़ने की आशा.
आशायें पूरी होती हैं।
अनमोल रतन-खानें हैं,
यह भारत की धरती है.

संस्कार जहाँ सीखे हैं,
स्वर्ग सा देश हमारा।
जहाँ बहे  प्रेम की धारा ,
वह भारत देश हमारा।।

दावत खाने आयी है,  
एक  पीढ़ी लिए उदासी।
प्रयत्न नहीं किया जिसने,
पीढ़ी रह जाती प्यासी।।   

पत्तल का दौर नहीं है।
बदला है आज ज़माना।
कतार में लगना होगा , 
यदि हमको दावत खाना।। 

नयी सदी की  करवट है,  
सबको है कदम बढ़ाना।
सबको कुछ-कुछ बोना है
मिलकर सब फसल कटाना।। 

आ साथ चले नव युग में,
अब साथ  पड़ेगाआना. 
एक नहीं, सब आ जाओ, 
यह नयी  सदी का गाना।। 

करोड़ अब आगे आये,
तुम उनका स्वागत  करना।।
लाखों के हैं देश यहाँ, 
उनका पल-पल है बढ़ना।।

शुरुआत नयी है भैया,
सबको लेकर है चलना।।
अगर जुगनुओं से सीखें,
आंधी पानी में जलना।।

अब देश पुकारे हमको ,
धन जमा नहीं रखना है. . 
कितने सालों तक सोये,  
कुछ तो इलाज करना है. 

जब देश  बढ़ रहा आगे,
छुक-छुक हो गाड़ी जैसे। 
अब वायुयान के आगे, 
बैल नहीं चाहें गाड़ी।।

सब लगे कतार बैंक में,
चा-पानी उन्हें पिलाओं।
सेवा में लगे युवाओं,
कुछ अपना फर्ज निभाओ।। 

पैदल का समय नहीं है,
डाटा का युग हावी है. 
आज कुछ  तो गति बढाओ
युवाओं का युग भावी है। 

मगरमच्छ मार न पाये,
सूखा नदिया का पानी।
मछली का दोष नहीं है,
न मछली, न मैला पानी।।

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