शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

शरद आलोक की कलम से - Suresh Chandra Shukla, Olso, 04.11.16

शरद आलोक की कलम से -suresh chandra shukla
speil.nett@gmail.com

My self (Suresh Chandra Shukla) and Ila Gandhi grand datter of Mahatma Gandhi in South Afrika

ख़ुदकुशी एक बुझदिली वाला ख्याल है. 
मेरे भारत में रहने वाले मित्र के बेटे ने खुदकुशी का प्रयास किया था मैं उसे देखने निजी अस्पताल में गया था. तब मैंने अपने मित्र से कहा था कि अब आप अपने बेटे का ख्याल ज्यादा रखना और स्वयम हाल-चाल पूछते रहना। पर उसके प्रेम विवाह करने पर मेरा मित्र कुछ नाखुश रहता था और काम सम्बन्ध रखता था जबकि मेरे मित्र ने प्रेमविवाह खुद किया था. 
बाद में पता चला कि मित्र का युवा बेटा बीमारी में भी अपने कष्ट छिपाता रहा और एक दिन युवावस्था में ही चल बसा. मुझे उसकी मृत्यु का बहुत दुःख है. मैंने उससे कहा था कि ख़ुदकुशी एक बुझदिली वाला ख्याल है. ये विचार कितने सार्थक हैं:
प्रयास करते पकडे़ जाने पर तो सजा है, आप क्यों विफल हुए यह आपकी कमजोरी है, इतनी कमजोर मन शक्ति वाले को खुला छोड़ना समाज के लिए खतरनाक हो सकता है, जो मरने के प्रयास में विफल हो गया वह जीवन में कैसे सफल होगा, इसलिए आप को कुछ समय सुधार गृह यानी जेल रखना अनिवार्य है.
या फिर उससे सभी एक सा व्यवहार करें, स्नेह दें पर सख्त रहें अपने निर्णय पर क्योकि ऐसे लोग झूठ बोलकर उधार लेना और आत्महत्या का नाटक करके सहयोग मांगने की आदत पड़ जाती है. ऐसे में दूसरे को जो उसे नहीं जानता गंभीर नाटक या आत्महत्या का बुझदिली प्रयास को नहीं जान पाता। 
इन विचारों को अपराध साहित्य का हिस्सा समझ कर ही पढ़ें और कुछ नहीं। 

बिन मांगे मोती मिले 

मेरे मित्र ने मुझसे कहा कि आप किसी की भी परेशानी देखकर द्रवित होते हैं जबकि वह व्यक्ति न तो आपसे फ़रियाद करता हैं न ही सहायता प्राप्त करने के बाद आपका ध्यान।  
मैंने पाया है और अनुभव किया है कि चाहे मुसीबत में किसी की सहायता करो या आजीवन थोड़ी-थोड़ी सहायता करो  पर अचानक कोई थोड़ी देर के लिए आता है उसकी ज्यादा सहायता एक बार करके आपको बहुत पीछे छोड़ने का असफल प्रयास करता है. ऐसे लोगों के ठोस मित्र नहीं होते क्योकि वह कभी किसी की मुसीबत में सहायता नहीं करते और जब वे फंसते हैं तो दूसरे भी उनसे दूर भागते हैं.
मेरे कुछ सम्बन्धियों को पुलिस पकड़ कर ले गयी थी मुझे फोन किया गया मैंने बहुत से सम्बन्धियों के अलावा उनसे भी संपर्क किया जो एक बार सहायता करने वालों में हैं पर खुद फंसने की स्थिति में नहीं।  पर मजे की बात यह है कि मैं उनके प्रिय लोगों में नहीं हूँ जिनकी मैंने बहुत मुसीबत में सहायता की थी.

मांगे मिले न भीख 
कुछ मामले में यह सच है की आपको मांगने पर भी सहायता नहीं मिलती बेशक आप उनकी सहायता खुद कर चुके हों. एक तो ऐसे व्यक्ति को आपपर विशवास नहीं होता क्योकि वह कभी विशवास नहीं करता कि जो आजतक सहायता करता था वह सहायता मांगने वाला या भिखारी कैसे हो सकता है और यह भी सोचता है की जैसे उसने उधर नहीं चुकाया तो यह पूर्व दानदाता उधार कैसे चुकायेगा।

आत्महत्या को बढ़ावा बनाम घटिया राजनीति 
आज आत्महत्या पर घिनौनी राजनीति हो रही है और ऐसे बयान दिए जा रहे हैं जो स्वीकार्य नहीं होने चाहिये।
आत्‍महत्‍या को अब तक पाप समझा जाता था लेकिन अब इसे शहीद कहा जा रहा, करोड़ रू0 दिये जा रहे हैं तो है क्‍या आत्‍महत्‍या की प्रवत्ति को बड़ावा नहीं मिलेगा।
ऐसी घटिया राजनीति करने वाले खुद मुख्यमंत्री सलीखे लोग हैं. राम बचाये ऐसे नेताओं के बयानों से.




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