सोमवार, 28 नवंबर 2016

संवाद बहुत जरूरी - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो

आज भारतीय दूतावास ओस्लो में भारतीय संविधान दिवस मना रहे हैं  दो दिन बाद. असल में 26 नवम्बर को यह दिवस था.
आज फेसबुक पर अभिव्यक्ति के नाम पर भारतीय पोस्टों में अक्सर असहिष्णुता दिखाई देती है. एक दूसरे  विचारों को सहने और व्यक्त करने के तरीके से लगता है कि अभी हम राजनैतिक शिक्षित नहीं है, खासकर कैसे अपनी बात रखें कि दूसरे की बात को एक सीमा तक तर्क संगत होने पर समाहित करते या उसे शामिल करते हुए जोड़ें।  ना कि संवाद तोड़ें।  महात्मा  गांधी जी से सीख सकते हैं  संवाद करना।  नेलसन मंडेला से सीखें संवाद करना और हिंसात्मक रवैये को छोड़कर अहिंसात्मक तरीके से व्यवहार करना सीखना। दूसरे के द्वारा भेदभाव करने पर भी हम उसे जोड़ना या उसके विचारों को जोड़ना नहीं भूलें। हमको किसी प्रकार के भी पड़ोसी के लिए तैयार रहना चाहिये.
जब मैं कविता लिख रहा हूँ तो तीन वर्षीय अरूरा क्लीटन नामक अपने बोडीकोली नस्ल के कुत्ते के मिमियाने पर कह कर जा रही है मैं जाकर उसे समझाकर आती हूँ. वह कुत्ते के पास जाती है और नार्वेजीय भाषा में कहती है (वार स्थिल्ले  Vær stille. (चुप रहो). वह देख रही है कि मैं लिख रहा हूँ. अतः मुझे शान्ति चाहिये। तीन वर्षीय अरूरा कितनी  समझदार है.

बुझी ना जब मरीचिकी प्यास,
बताओ उस अमृत का मोल.
छू ना  सके जब दिल का कोण,
कब संबंधों की गांठें खोल..

यह मेरा नहीं,  तेरा सही,
रहा ना  मन में आज विवेक।
अपने  सुखों के कारण आज,
संवाद कहाँ जब  उठे विरोध,

जहाँ क्रोध कैसी वह शान्ति,
पास रहकर  दे पाये  साथ.
वायु में घुली खुशबू  के बीच,
भूमि पर महकता  हरसिंगार। .

शहीद मूर्ति जहाँ पर आज,
इलाहाबाद  अमर इतिहास,
लड़ते  पहुंचे कंपनी बाग़
देश को करवाने आजाद,

बहस करते थे तब दो वीर,
कहते कुछ और करते और.
बदलते पाला ऐसे आज
थाल के बैगन बन सिरमौर।।

हांकते मिल जाते चहुओर,
फैलाते कूड़ा सभी  ओर.
अनुशासन हीन यातायात  
प्राण देते सड़कों पर लोग. .

आज जब प्रतिष्ठित कवियित्री बहन सरिता शर्मा जी अपनी फेस बुक पर लिखती हैं तो समझ में आता है,
"देखती हूँ कि फेसबुक पर लगभग 90 प्रतिशत पोस्ट राजनैतिक, धार्मिक अंधविश्वास ( कॉमेंट करो 2 सेकंड में कुछ अच्छा होगा टाइप) या सांप्रदायिक कट्टरता से जुड़ी आ रही हैं। निराशा होती है इससे। यहां लोगों को जोड़ने के बजाय गुटबन्दी, मूल्यों के क्षरण और तोड़ने की मानसिकता वाले लोग और पोस्ट्स हावी हो गए हैं। समझ में नहीं आता कि क्या करना चाहिये।"

आज की यही है नियति अधीर,
घूस  से बने  अव्वल संस्थान।।
शिक्षा राष्ट्रीयकरण करके,
समान  शिक्षा हो भारत  देश..   

यदि सुधी पाठक अपने विचार लिखते हैं तो लेखक से एक आत्मीय रिश्ता बनता है और होता है स्वस्थ संवाद जहाँ आलोचक और अध्यापक या आदर्श पुलिस और सैनिक भी रास्ता नहें रोक पाते लेख और प्रिय पाठक के वैचारिक मिलान से. धन्यवाद।
आपका दिन मंगलमय हो
ओस्लो, नार्वे, 28.11.16
speil.nett@gmail.com

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