गुरुवार, 30 मार्च 2017

चुनाव के चंदे में पारदर्शिता और गायकवाड़ अपराध करके क्यों खुले घूम रहे हैं. -सुरेशचंद्र शुक्ल

चुनाव के चंदे में पारदर्शिता और गायकवाड़ अपराध करके क्यों खुले घूम रहे हैं. -सुरेशचंद्र शुक्ल 

बन्धुवर, नमस्कार मैं आपको दो पत्र को दोबारा प्रस्तुत कर रहा  हूँ जिसे मेरे मित्रों ने फेसबुक में लिखा है
यह सामयिक और रुचिकर है इसलिए लिख रहा हूँ. धन्यवाद।

पारदर्शिता
पारदर्शिता के बारे में प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि देश में भृष्टाचार का मुख्य कारण है कि पिछले 70 वर्ष में राजनीतिक पार्टियों में चंदा लेने में पारदर्षिता रखी। उस समय लगा था है कि यह सरकार राजनीतिक पार्टियों की चंदा वसूली पर कुछ अंकुश लगाएगी। पारदर्शी बनाएगी। जबकि नेहरू अपने कार्यकाल में सदा चेक से पार्टी के लिए चंदे का चेक लेते थे। नए नियमों के अनुसार कोई भी कार्पोरेट अपने लाभ का 7.5 प्रतिशत चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकता है। चूँकि उसका इंदराज कंपनी के बहीखाते में नहीं होगा तो वह उससे अधिक भी दे सकता है। वह बांड्स केद्वारा दिया जाएगा। उसका भी शायद कहीं हिसाब नहीं रखा जाएगा। अभी नियम बन रहे हैं। पहले जो प्रधानमंत्री के नाम पर सहारा और बिरला के यहाँ कई किश्तों में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में धन देने की बात इंदराज में थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बिना जांच के ख़ारिज कर दिया था, अब उस झूठ की गुंजायश नहीं रहेगी। इससे जुड़ा सवाल है कि वे कंपनियाँ अपने आई टी रिटर्न में कैसे दिखाएंगी। या पैसा चाहे जितना भी दिया गया हो कंपनियों को 7.5 प्रतिशत पर ही छूट मिलेगी। उसकी एवज़ में सरकारें कार्पेरेट के हिसाब से बनेंगी। काँग्रेस के ज़माने में भी कहा जाता था बिरला और टाटा ही सरकार बनवाते हैं। दूसरा सवाल है कि जो चंदा पार्टीज़ को दिया जाता है वह बोर्ड आफ़ डाइरेक्टर्स और जनरल बाडी की स्वीकृति से दिया जाता है। जब बहीखाते में इंदराज नहीं रखा जाएगा तो शेयर होल्डर्स का पैसा बिना उनका मंज़ूरी के चंदेमें कैसे दिया जा सकता है। एक और ख़तरा है कि मौखिक रुप से या चेयरमैंन कोअधिकृत करके बिना एजेंडे पर लाए पैसा दिया जाता तो अ्धिकृत व्यक्ति उसमें से एक अंश स्वयं ले सकता है। कोई सवाल भी नहीं उठाया जा सकता। शब्दों के अर्थ समय के साथ बदलते रहते हैं। पारदर्शिता के अर्थ भी हो सकता है बदल गए हों। विरोधी जो हर बात पर सवाल उठाते हैं वे भी इस नए परिवर्तन को नए अर्थोों में ले रहे हों।
-    Giriraj Kishore
An open question to Delhi police cmmissioner- which law stops you from arresting Gayakawad.
In 1978 I was S.S.P. Bareilly. One M. L.A. had abused and overturned the chair of a doctor on duty. I had got the M.L.A. arrested immediately and later informed the Speaker and the C.M. The matter was raised in the Assembly, but no action was taken against me.

-Mahesh Dwevedi, Ret. IPS


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