रविवार, 29 अक्तूबर 2017

भाग्य की लकीरें खींच, हिम्मत के बातें करें। अब भावना में न बहें, अपनी खुद हिफाजत करें।। - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'-Suresh Chandra Shukla


हम आज की बातें करें, सब काम की बातें करें। 
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'














चित्र में बायें से कृपाशंकर, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, श्री  पाण्डेय  जी और लेखक शरद आलोक 
दिल्ली में साहित्य अकादमी के भवन में 

जो माँगकर नेता बने,
तिजोरी काला धन भरें।
पुराने नोट के दलाल,
अब जी हुजूरी कम करें।

ये राशन कार्ड है या,
यह दहशत की धमकी है,
शान्ति से सहना समझना,
हमको गीदड़ भपकी है

अब नहीं कार मोटर हो,
ना चापलूस वोटर हो.
हरा-भरा मैदान जहाँ ,
बाल वृद्ध  की बैठक हो.

बे सिर पैर बात करे,
ये नेता नहीं चाहिये।
हर हाथ  में काम हो,
सांत्वना नहीं चाहिये।

परिवारों की सेवा में,
बस टैक्स तुम्हें चाहिये।
तुम बैंक के मालिक बनो,
अब उधार नहीं चाहिये।

गाँव का अपना बैंक हो,
साहूकार प्रतिबन्ध हो.
बिना जनता की मर्जी के
नेता का आना बन्द हो.

मोबाइल अपने बनायेंगे,
अन्यायी को  भगायेंगे।
हम माल खुद बनायेंगे,
हम भूखे ना सोयेंगे।

धर्म के नाम अधर्म है,
राजनीति में कुकर्म है.
खायें और खिलायेंगे,
मानवता का धर्म है.

आओ मौसम की बात कर,
तूफ़ान की दावत करें।
समानता मानवता का,
स्वदेश  में स्वागत करें।

बस लेनिन और गांधी हैं?
जबतक  जमीर पानी है?
पतवार को पकड़ तू अब!
पार नौका  लगानी है.

भाग्य की लकीरें खींच,
हिम्मत के बातें करें।
अब भावना में न बहें,
अपनी खुद हिफाजत करें।।

- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
ओस्लो, 29.10. 2017


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