गुरुवार, 28 जनवरी 2010

पहले राजेंद्र अवस्थी और अब महादेव अवस्थी जी नहीं रहे-शरद आलोक

पहले राजेंद्र अवस्थी ३० दिसंबर को हमसे विदा



अब महादेव अवस्थी जी २८ जनवरी को २ बजे नहीं रहे-शरद आलोक


राजेंद्र अवस्थी जी ३० दिसंबर को और महादेव अवस्थी आज २८ जनवरी को दो बजे हमसे हमेशा के लिए विदा हो गए। दोनों ही उन्नाव जिले के थे ।
हमारी दोनों महानुभावों को श्रद्धा सुमन अर्पित हैं ।

लखनऊ नगर का महान कारीगर दुनिया से विदा


कैसरबाग, लालबाग ही नहीं पूरा लखनऊ श्री महादेव अवस्थी जी को रायल इन फील्ड मोटर साईकिल के गुरु कारीगरों के रूप में सदा याद रखेगा। उनके पास देश और विदेश से मोटरसाइकिल के शौक़ीन लोग मिलने और सलाह लेने आते थे। आज वह हम सबको छोड़कर चले गए तब उनकी दो बातें हमें सदा याद आएँगी: एक तो कर्म पूजा है और कोई काम छोटा और बड़ा नहीं है। उन्होंने अपने बेटों और तमाम लोगों को मोटरसाइकिल की कारीगरी का हुनर सिखाया।
श्री राम प्रसाद अवस्थी (पिता) और श्रीमती बिटटी (माता) के घर महादेव अवस्थी जी का जन्म २० मई १९५१ को गाँव में हुआ था और मृत्यु २८ जनवरी २०१० को लखनऊ में हुई थी। वह अपने पीछे अपनी पत्नी कांती दो पुत्रों अनूप और आनन्द तथा तीन पुत्रियों: सीमा, उमा और स्नेहा को छोड़ गए हैं। वह अपनी साली की बेटी रेनू को पुत्री की तरह और मुझे छोटे भाई से ज्यादा मानते थे। मुझे कई बार लगता है की सम्बन्ध रक्त से अधिक अहसासों के होते हैं। अवस्थी जी ने आजीवन करके दिखाया। वह बात के धनी थे।
आदमी को अपने जीवन में सब कुछ नहीं बताना होता है क्योकि खुली किताब की तरह जीवन जीना बहुत मुश्किल कार्य है। बहुत कुछ छिपाना होता है। आप उसी के साथ अपनी निजी बातें साझा कर सकते हैं जिस पर विस्वास हो, आपके निजी जीवन में दखल न दे और वह आपको सहयोग दे सके। ऐसे ही अवस्थी जी बहुत सी पारिवारिक और निजी बातें मुझसे साझा करते थे। वह बेटे और बेटियों और बहुओं पूजा जी और संध्या को समान सम्मान देते थे जो भारत में कम लोग ही देते हैं। अपने व्यक्ति के लिए वह सब कुछ करने को तैयार थे और इन्हीं बातों के लिए वह परिवार और परिवार के बाहर जाने जाते थे। उन्होंने जमीन हो या जायजाद, अपने चचेरे भाइयों, सम्बन्धियों आदि से कभी शिकायत नहीं की वह सदा उन सभी को अपने ह्रदय का हिस्सा समझते रहे और मरते दम तक उनसे प्यार करते थे उनके भाई की बेटी राधा जी हों या अन्य अपने घर में पढ़ने और रहने की अनुमति ही नहीं दी उन सभी को अपने बच्चों की तरह रक्खा।
उनकी बड़ी साली स्व श्रीमती स्वतन्त्र मिश्रा ने उन्हें और उनके परिवार को खजुहा में अवस्थी जी के व्यवहार और स्नेह को देखते हुए और स्वयं भी स्वतन्त्र जी बहुत उदार थी, ने अपने साथ रक्खा जहाँ वह अपने परिवार के साथ जीवन भर रहते रहे और घर की रक्षा करते रहे ।

लम्बे कद के, दुबले-पतले स्मार्ट से दिखने वाले, मोटर साईकिल चलाने में जादूगर, मुख में पान, संयम में जबान, आदर-सत्कार में जान रखने वाले महादेव अवस्थी जी के साथ मोटरसाइकिल पर अनेक बार ससुराल जाने का अवसर मिला और आनन्द उठाया। मेरे लिए गर्मी हो या सर्दी का ध्यान नहीं रखते थे। पीठ पीछे भी मेरे हित के बारे में सोचते थे ऐसे थे मेरे प्रिय सम्बन्धी अवस्थी जी। अवस्थी जी को एक सद्यरचित कविता अर्पित कर रहा हूँ। आपके जो भाव उस समय मन में होते हैं कविता में आने से नहीं चूकते। लीजिये प्रस्तुत है यह कविता:

तेरी बाहों की छाया हम अपने घर में पायेंगे
' सूनी आज मुंडेरों पर या घर-आँगन
जब पक्षी उड़कर आएंगे?,
बिखरे अन्न के दाने चुनकर जायेंगे
तेरे बाहों की छाया
हम अपने घर में पायेंगे।

जिन्हें समझते गैर, मगर जो प्रेम करें
वह संबंधों की तिर्यक रेखा काट चुके।
अगर चाहते नभ में उड़ना
और दूसरो के हित जीना,
आंधी-तूफानों के पस्त होंसले,
क्या रोक सके हैं
नित नभ में पक्षी का निर्भय उड़ना

सच को कभी न झुठला पाए
क्यों सदा छिपाते अपने अंतर में
अपने आत्मकथ्य के चेहरे।
जो दिखे वह भी सच है
महसूस करे तो वह भी सच है।
तेरा अपना मेरा अपना-अपना सच है।

संकोच-दोहरी, लोग कहेंगे?
अपने घर को जला रहे हम
दूसरों की कानाफूसी के बस में
हम हैं कितने दकियानूसी
इंसान से ज्यादा भूत-प्रेत
जो सत्य नहीं होते हैं!

आओ मिलकर याद करें
अपने प्रिय के उन बीते हुए पलों को
जीवन के संघर्षों को,
मन के प्रेम कलश को।

कर्म पूजा
तो क्या ज्योतिष एक छलावा ?
संस्कार की कुरूतियों का स्वाहा।
तर्क संगत और न्यायिक हो
अपना जीवन-दर्शन !
अपने-अपने मार्ग बनाओ।
अकेला मनुज आया दुनिया में
समाज बनाकर जाता।

प्रणाम, अर्पित हैं श्रद्धा सुमन,
नयन के तारे, अनमोल रतन।
सत्य नहीं झुटला पायेंगे
नहीं लौट पाओगे फिर से
जितने करूँ जतन?

उड़ते रहें पखेरू मन के
जब तक सांस भरूं।
प्रेम में किया नहीं समझौता
कैसी आस धरु
क्या न त्याग करूँ ॥

पक्षी से उच्च हौंसले
अब नयी उड़ान उड़ें,
लेखन साथ किया समझौता
चलचित्र सा चक्र चले।।'
- शरद आलोक
ओस्लो, नार्वे दिनांक २९.०१.१०

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

may god give peace to his soul.
bhagwan apni kripa drishti Late Sri Mahadev Prasad Awasthi jee ke parivar pe hamesha banaye rakhe.

JAIPRAKASH ने कहा…

KAVITA AUR LEKH KE MADHYAM SE ADARNIYA MAUSA JI (LATE SHREE MAHADEV PRASAD AWASTHI)KE BARE ME JO VICHAR VYAKT KIYE HAE UNSE HUME PRERNA LENI CHAHIYE, MAUSA JI AB HAMARE BICH NAHI RAHE LEKIN HAMARI YADO ME VE HAMESA BANE RAHENGE
ISWAR IS KATHIN SAMAY ME UNKE PARIVAR KO IS SADME SE UBARNE KI SAKTI PRADAN KARE

JAIPRAKASH ने कहा…

Lekh aur Kavita ke madhyam se Adarniya Mausaji (Late Shri Mahadev Prasad Awasthi) ji ke bare me jo vichar vyakt kiye hae unse hame prarna leni chahiye, vnke vicharo, jivan shaili, samajik roojhano se hum sabko seekh leni chahiye. Aaj vo hamare bich nahi hi unki is kami ko kisi bhi tarah se pura nahi kiya ja sakta. Is kathin gadi me Ishwar unke parivar ke sadasyo ko is sadme se ubarne ki sakti pradan kare.

navinshukla ने कहा…

Aap ne apne lekh aur kavita k maadhyam se Shri. Mahadev Awasthi ji ki jeevni par jo prakaash daala hai veh unke vaastavik jeevan ka darpan hai. Awasthi Ji ne kabhi apno aur gaero me fark nahi kiya. Mere liye unka nidhan ek apoorniy kshati hai. Mere sasuraal paksh k mukhya kendra bindoo Shri Awasthi Ji the jinhone mujhe hamesha apne sage daamad k samaan sneh aur sammaan diya. Veh mere liye sage sasur se bhi badh kar the. Unki an upasthiti mere liye mere sasuraal me ek aisa rikt sthaan chod gayi hai jo shayad kabhi bharaa nahi ja sakta...