बुधवार, 25 अप्रैल 2018

लघुकथा, सीता का रामाभियोग
- सुरेशचन्द्र शुक्ल

आज जब से राम के नाम पर रामसेना के दो भक्तो ने दुर्गा को पीटा जब वह अपने होने वाले पति के साथ वेलेनटाइन दिवस पर नेशनल पार्क में बैठी थी . धर्म के नाम पर गुन्डे दुर्गा और अन्य प्रेमी जोड़े को बुरी -बुरी गालियां देकर धक्का देकर भगा रहे थेे.  और उसका होने वाला पति सोहनलाल चुपचाप खड़ा रहा. माँ ऐसा डरपोक आदमी मेरी क्या रक्षा करेगा? नहीं करनी मुझे डरपोक आदमी से शादी?"
"बेटी तेरा सोहन भोलाभाला है. अपने काम से काम ऱखता है.
आज कल जमाना बहुत खराब है."
"मँा अगर मेरी ईज्जत भी लूट ले उसके होने वाले (मेरे)  पति ने कोई विरोध नहीं किया" दुर्गा ने अपनी माता से आगे कहा,
"मुझे अब सोहन लाल  से शादी नहीं करनी".
"ऐसा नहीं कहते, बेटी. सोहन तो भगवान राम की तरह है."  मँा ने कहा.
"माँ मुझे ऐसेे नकली राम नहीं चाहिए. इनसे तो अच्छे ऱावण थे,  जिन्होंने सीता का अपहरण किया पर जब भी सीता केे पास आया तो रावण अपनी पत्नी मन्दोदरी के साथ जाता था.  रावण ने कभी भी सीता के साथ कभी जोर जबरदस्ती नहीं की."
"ठीक है बेटी! तेरी जो मरजी हो कर, कमेरा काम तो तुम्हें समझाना था " कहकर उसकी माँँ चली गयी.

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