रविवार, 1 अप्रैल 2018

Hindi Poem by Suresh Chandra Shukla न बेचो जनता को जनता का पानी - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे से।


बेचो जनता को  जनता का पानी 
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे  से।  
बेचो बेचो जनता का पानी। 
इसमें  जनता  की  जीवन कहानी। 
वायु और साँसों , मोल लगाओ।
ईश्वर की कश्ती, मुसाफिर  जानी। 

बंद करो, बेचो इसे बोतल में भर कर 
जनता की  दौलत, इनसानियत  निभानी।
सभी को मिले , हर स्टेशन  और घरों में 
बंद करो नलके, पालिका का पानी। 

इसे पुरखों ने सींचा हैपाला सँवारा। 
यह बीज हमारा यह धरती  निशानी। 
विश्वास घात, अतिक्रमण  खींचतानी। 
जीवन नर्क  कर  खुद बना  राजा-रानी। 

देना शरण अब , जितना पैर चाटे ,
कॉर्पोरेटरों ने  लगाये , जनता को चाँटें। 
नेता हमारे  जब कौड़ियों से बिक रहे हैं.
सियासत में अपनी , हम्हें भूल गए हैं।

हमारे घूरों के दिन  कभी तो फिरेंगे ,
अगर जनता जीती, याद जेलों  में नानी।   
अमीरों  की वफ़ा दफा कर  लाज बचानी,
मन्त्री मक्कारों ! मिले  चुल्लू भर पानी।

खुद कानून बनाकर तोड़ने  की  मनमानी। 
बैंको को मिलाकर , कालेधन  की बेईमानी। 
 सोये कामगारों  शेरों को जगाओ ?
मिटेगी अकड़, पड़ी गर जेलों की खानी।  

बच्चे काम पर हैं, युवा नशा कर रहे हैं। 
नोटबन्दी  से कितने  घर के चूल्हे बुझे हैं। 
कॉर्पोरेटरों को  दे धन  बैंक खाली किये हैं। 
नहीं चाहिए  बर्बादियांआँधी -सुनामी। 

जब तलक कामगारों को रोजी मिलेगी ,
भूखे पेट को जब तक रोटी मिलेगी। 
अपने बिलखते , अपने घर गिरवी रखकर ,
वायदों  से  कभी  पेट भरे हैं भरेंगे। 

बहुत कर लिया,  राम राज्य का बहाना।।
जनता की दौलत से जनता पर निशाना।
जो आया जगत मेंउसे एक दिन जाना,
जनता  को पिलाओ, जनता का पानी।

सरकार औंधी पड़ी, गैरों की चौखटों पर ,
अपनी जनता मर रही,  इनकी मेहरबानी। 
बेचो, बेचो, जनता को उसका पानी 
इस मुल्क का पानी, जनता  का पानी। 

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