चन्द्र प्रकाश का पूजन सफल होगा
चित्र में बाएँ से खड़े चन्द्र प्रकाश के पिता और मेरे भाई रमेश चन्द्र शुक्ल, बहन शैल, दादी किशोरी देवी और नीचे बैठे दीपावली पर पूजा कर रहे चन्द्र प्रकाश जिनका 23 नवम्बर २०१० को विवाह है।
पुराना चित्र नयी यादें
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मेरी अपनी शादी का चित्र मई १९७७ का है। ऊपर खड़े हुए बाएँ से मेरी बड़ी चाची (स्वर्गीय), सावित्री बुआ, मेरी भाभी किरण (स्वर्गीय) और बितानिया बुआ नीचे बैठे हुए बाएँ से बड़ी रामरती बुआ, बड़े फूफा राम कुमार अवस्थी, मेरी पत्नी माया और स्वयं मैं
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मेरे बचपन में अनेक मित्र थे पर सभी बिछड़ गए। कोई बुलंद शहर , उत्तर प्रदेश में, कोई लखीमपुर खीरी में, तो कोई अमरीका में, तो कोई इस दुनिया से विदा हो गए जिनमें विजय सिंह और पंकज सिंह। ये सभी मित्र लखनऊ के ऐशबाग पुरानी श्रमिक बस्ती में मेरे साथ खेला करते थे। जो नहीं होता है वह अधिक याद आता है और जो पास होता है उसे हम भूल जाते हैं। यह कोई नयी बात नहीं है।
ज्ञानयुग के कर्म आंगन में हम चिडयों की तरह दाने भी नहीं चुग पाते और परेशान रहते हैं की मेरे आँगन से दूसरा दाना न चुग जाए। अभी कल की बात है ओस्लो स्थित गुरुद्वारा में गुरुनानक देव जी का जन्मदिन मनाया जा रहा था। मैं भी वहाँ उपस्थित था। एक ग्रन्थी जी ने प्रवचन में गुरुनानक देव जी की एक घटना सुनाई। शायद वह घटना कुछ इस तरह थी। बाबा गुरुनानक देव जी को एक अमीर आदमी ने आदर पूर्वक बुलाया जिसने बहुत धन - दौलत एकत्र कर रखी थी। जाते समय उस अमीर आदमी ने गुरुनानक देव जी से कहा, मुझे कोई ऐसा उपहार दीजिये जिसे मैं अपने साथ सदा रख सकूं।' गुरुनानक देव जी ने उसे एक सुई दी और कहा, 'यह सुई जब तुम दुनिया से विदा होना तो इसे भी साथ लेते जाना।' कहकर वह चलने लगे ।
उस व्यक्ति ने थोड़ा विचार किया। कैसे संभव है? मरते समय सुई मैं साथ ले जा सकूंगा ? कैसे याद रखूंगा और कैसे ले जा सकूंगा? वह व्यक्ति गुरुनानक देव जी की ओर दौड़कर गया और पूछा ,'महाराज कैसे मैं सुई साथ ले जा सकूंगा। मुझे तो अपना ही होश नहीं रहेगा।'
तब गुरुनानक देव जी ने कहा, 'जो तुमने इतना धन कमाया और अपने निजी सबंधियों के पास जोड़कर रखा क्या उसे साथ ले जा सकोगे? यदि हाँ तो मेरी सुई भी लेते जाना।' उस अमीर आदमी को समझ में आ गया।
गुरुनानक देव सबसे बड़े शिक्षक थे।
मैंने नार्वे से भारत जाने का टिकट आरक्षित करा रखा था। पर अवकाश के न मिलने के कारण २१ को भारत में उल्लास की शादी में और २३ को चन्द्र प्रकाश की शादी में नहीं जा सका। समय-समय की बात होती है। समय से सीखना चाहिए न ही उसे टटोलना चाहिए। समय एक सा नहीं रहता और किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।
चन्द्र प्रकाश अपना वैवाहिक जीवन आरम्भ करें, सुखी रहें, संघर्ष करें और आत्मनिर्भर बनें। बिना आत्मनिर्भरता के स्वाभिमान और स्वतंत्रता से व्यक्ति नहीं जी सकता। कभी-कभी हमको उन लोगों के बंधन में रहना पड़ता है जो खुद दूसरों के गुलाम होते हैं। क्षणिक सुख और दोहरी सोच: जैसे अपने लिए आजादी और दूसरों के लिए बंधन पूर्ण जीवन। विवाह का समय आत्ममंथन का समय होता है। धन से कोई किसी को नहीं खरीद सकता है। बीमार होने पर अपने ही परिजन आपसे आपके चेक में आपकी इच्छा के मुताबिक हस्ताक्षर करने देंगे। कर्म, कृपा और ज्ञान का ऐसा समुद्र यदि हम अपने आपमें भर सकें तो अवश्य ही धनी से बेहतर सोच और अधिक उपकारी हो सकते हैं जिससे मन में स्वच्छता और शान्ति ख़ुशी प्रदान करेगी।
व्यक्ति को अपने प्रयोग भी करने चाहिए। सौ-सौ चूहे बहुतों ने मारे हैं पर वह अच्छे उपदेशी या हमारे नायक नहीं हो सकते। हम अपने नायक स्वयं बन सकते हैं। दूसरों पर अपनी सोच थोप नहीं सकते।
ख़ुशी के माहौल में, परिवार के साथ होने से कितना सुखकर लगता है, काश वे जो इस दुनिया में नहीं हैं पर इच्छा होती है काश वे भी साथ-साथ होते तो क्या कहना था। जो आज साथ हैं कल साथ छोड़ देंगे। स्वयं या समय के साथ आदमी बूढा होता है। नवविवाहित प्राय हमेशा साथ रहते हैं शेष लोग तो आते जाते रहेंगे। जैसे चन्द्र प्रकाश और नयी जीवन संगिनी के साथ अपना सुखी जीवन बिताएंगे।
उल्लास जी भी अपने उदार मातापिता के साथ अपनी सांस्कृतिक मूल्यों के साथ हंसी ख़ुशी जीवन जियेंगे। हमने तो एक ही खतरनाक रात उल्लास के साथ उनके पिता प्रोफ़ेसर बेदीजी, दिवाकर जी के साथ बिताई थी जिसमें संजय भी साथ थे। आदमी को जीवन में सुख -दुःख की अनगिनत रातें अपने जीवनसाथी के साथ बितानी होती हैं। जो संयम से उन्हें बिता लेता है वही सफल होता है।
छिप-छिपकर तो अपने प्रेमी से सभी मिलते होंगे। पर सभी को पता होता है बस मन का भ्रम और आडम्बर दूसरे के लिए नहीं पर अपने लिए होता है।
मेरे बाबा (दादा) कहा करते थे की राजनीति और नेतागिरी घर से शुरू करनी चाहिए। कोई भी सुधार अपने घर से शुरू होता है। मेरे बाबा ने अपने गावं में कुआं और मंदिर बनवाया जबकि उनके पास इतने पैसे नहीं थे। उनकी नयी पीढ़ी ने न ही उनके नाम से या अपने वा जनता के लिए कुछ ठोस किया है जबकि सभी अपने-अपने तरीके से समृद्धि वाले हैं। यहाँ तक हमारे बाप दादा का दिया हुआ हमारे परिजनों के पास बहुत है। मेरे पास भी उनका कम आशीष नहीं है जिनकी प्रेरणा से समय -समय पर उनके नाम से गरीबों और प्रतिभाशाली लोगों को सम्मानित कर अपने कम ज्ञान पर पर्दा डालता रहता हूँ।
अपनी गोदावरी बुआ, बड़ी चाची, अपनी किरण भाभी जी, अपनी माँ और पिताजी तब बहुत याद आते हैं जब परिवार में किसी घर में काम -काज होता है। तीज त्यौहार होते हैं। माँ आ नहीं सकती पर लगता है की मुसीबत के समय पुकारूँगा तब वह रक्षा करेगी। यही है अंतर्मन के विचार का क्रम।
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