रविवार, 15 मई 2011

हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' (ओस्लो नार्वे)


डॉ वेस्लर, डॉ विष्णु सरवदे, इंदिरा गाजीइवा, प्रो काली चरण स्नेही, डॉ. रतन पाण्डेय, मारिये नेजियेसी और अलेक्जन्द्रा कान्सोलारी
दिन पर दिन हिंदी का प्रसार हो रहा है। विदेशों में रहने वाले प्रवासियों ने अपने बच्चों को भी हिंदी सिखाना शुरू कर दिया है। हिंदी अब गर्व की भाषा बन रही है और विदेशों में धीरे -धीरे रोजगार की भाषा भी बन रही है।
मार्च में मुंबई विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई और प्रो विष्णु सरवदे और प्रो कालीचरण स्नेही के साथ संपर्क करके उनकी बातचीत के आधार पर मैंने निम्न रिपोर्ट बनाई है। स्वागत है:
'हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप' 7 और 8 मार्च को मुंबई विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग द्वारा 'हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप' विषय पर अंतर्राष्ट्रीय द्विदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस गोष्ठी के उद्घाटन उपसाला विश्व विद्यालय स्वीडेन के एशियाई भाषा विभाग के प्रो डॉ. हेंज वेर्नर वेस्लर के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी आज केवल मात्र भारत कि ही नहीं पूरे विश्व कि भाषा बनने जा रही है. हिंदी विश्व के २५१ देशों में बोली जा रही है. इतना ही नहीं इस आधुनिक युग में अंग्रेजी चीनी के बाद हिंदी का ही प्रथम स्थान है. उन्होंने नार्वे से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'स्पाइल-दर्पण' के योगदान का भी जिक्र किया. इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो काली चरण स्नेही ने अपनी विदेशों में साहित्यिक यात्राओं का वर्णन करते हुए कहा कि विदेशों में जो हिंदी का प्रचार हो रहा है उसकी जितनी प्रशंसा कि जाए कम है. उन्होंने नार्वे में सुरेशचन्द्र शुक्ल एवं स्पाइल-दर्पण तथा संगीता सीमोनसेन द्वारा चलाये जा रहे हिंदी स्कूल की हिंदी की मजबूत भूमि बनाये जाने की सराहना की. उन्होंने अपने नार्वे, अमरीका और यू के से जुड़े संस्मरण भी सुनाये. विदेश से आये विद्वानों ने अपने सूझबूझ भरे और तथ्यपरक वक्तव्य में हिंदी के वैश्वीय्करण पर प्रकाश डाला. इनमें प्रमुख हैं: मास्को विश्व विद्यालय की इंदिरा गाजीइवा, टोरिनो विश्व विद्यालय इटली की अलेक्जन्द्रा कान्सोलारी, हंगरी से पधारीं मारिये नेजियेसी और हमबर्ग विश्व विद्यालय के डॉ. राम प्रसाद भट्ट थे. मुंबई विश्व विद्यालय के कुलपति डॉ. राजन वेलुकर और एस जे टी विश्व विद्यालय के कुलपति विनोद तिम्बरेवाला के साथ-साथ अपनी शुभकामनाओं और विचारों से लाभान्वित किया उनमें प्रमुख थे डॉ. विलास शिंदे, आर एस हांडे, डॉ. माधव पंडित, डॉ आर के उपाध्याय और हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. रतन पाण्डेय. इस सफल अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी के संयोजक थे प्रो विष्णु सरवदे. डॉ. रतन पाण्डेय ने सभी को गोष्ठी को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया और प्रो विष्णु सरवदे जी ने आगामी वर्ष में भी संगोष्ठी आयोजित करने की इच्छा जताई.

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