१७ मई को कुछ सर्दी थी। मौसम में नमी थी। बच्चों -युवाओं और बड़ों सभी के मन में एक नया उत्साह था। नार्वे का राष्ट्रीय पर्व तो था ही साथ ही एक मेला और आनन्द का दिन था बच्चों के लिए। आइसक्रीम, नयी और राष्ट्रीय पोषक और परिधान हर जगह रंग बिरंगे नजर आ रहे थे। स्कूलों और पार्कों में मेला लगा हुआ था। ओस्लो में राजा के परसात के सामने तो और भी भव्य नजारा था। स्कूल के बच्चे, बचे, युवा और बड़ों के बैंड बाजा का समूह अपनी-अपनी धुन- तान से वातावरण को मनोरम बना रहा था।
बुधवार, 18 मई 2011
१७ मई की यादगार शाम चित्रों के साथ -सुरेशचन्द्र शुक्ल
१७ मई की यादगार शाम चित्रों के साथ -सुरेशचन्द्र शुक्ल
१७ मई को कुछ सर्दी थी। मौसम में नमी थी। बच्चों -युवाओं और बड़ों सभी के मन में एक नया उत्साह था। नार्वे का राष्ट्रीय पर्व तो था ही साथ ही एक मेला और आनन्द का दिन था बच्चों के लिए। आइसक्रीम, नयी और राष्ट्रीय पोषक और परिधान हर जगह रंग बिरंगे नजर आ रहे थे। स्कूलों और पार्कों में मेला लगा हुआ था। ओस्लो में राजा के परसात के सामने तो और भी भव्य नजारा था। स्कूल के बच्चे, बचे, युवा और बड़ों के बैंड बाजा का समूह अपनी-अपनी धुन- तान से वातावरण को मनोरम बना रहा था।
१७ मई को कुछ सर्दी थी। मौसम में नमी थी। बच्चों -युवाओं और बड़ों सभी के मन में एक नया उत्साह था। नार्वे का राष्ट्रीय पर्व तो था ही साथ ही एक मेला और आनन्द का दिन था बच्चों के लिए। आइसक्रीम, नयी और राष्ट्रीय पोषक और परिधान हर जगह रंग बिरंगे नजर आ रहे थे। स्कूलों और पार्कों में मेला लगा हुआ था। ओस्लो में राजा के परसात के सामने तो और भी भव्य नजारा था। स्कूल के बच्चे, बचे, युवा और बड़ों के बैंड बाजा का समूह अपनी-अपनी धुन- तान से वातावरण को मनोरम बना रहा था।
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