खेतों की हरियाली रहने दो- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
लोकपाल की बात न करना,
भारत स्वराज की बात न करना।
अन्ना हों या अग्निवेश हों,
उनसे अब अन्याय न करना॥
खेतों को खेत ही रहने दो,
अब जमीन अधिग्रहण की बात न करो,
गावों में खुशियों के खातिर,
हरियाली - खुशहाली की बात करो।।
मंत्री-सांसद करें मनमानी,
उनकी सजा की बात न करना।
आम आदमी के तलवों की
खिसकी जमीन की बात न करना॥
संसद-राज्यसभा, दिल्ली में
विधान सभायें ऐसी गूंगी,
काम की बातें कुछ कम करती।
सबसे ज्यादा छुट्टी करती।
सड़क- खेत, कर्मशालाओं में,
जनता अधिकार की बातें करना।
संसद और सभाओं में तुम
जनजन के सर्वहारे बनना॥
शासन गद्दी पर बैठाया,
प्रतिनिधि हो, मालिक नहीं समझना।
लोकपाल का यही इरादा,
लोकलाज मर्यादा रखना॥
प्रधान मंत्री बस प्रतिनिधि हैं,
वे राजा हैं सपना मत पालें।
जनता की ही जय-जय गायें,
न अपनी जयकार कराएं।
मालिक नहीं, प्रतिनिधि नेता,
देश की खातिर सब कुछ देता।
जो भी नेता कुछ नहीं देता,
उसे कुर्सी का हक़ नहीं होता।
भूमि अधिग्रहण से पहले तुम
हरियाली की बातें सोचो
जनसँख्या विस्फोट
साथ में सड़कों का अभाव,
खेतों- बागानों को कटवाकर
कैसा पर्यावरण प्रभाव।।
गावों को गावं रहने दो,
खेतों में फसलें होने दो।
रोटी कपड़ा नहीं दे सके,
शान्ति से उनको रहने तो दो।
नगर में सड़क, सड़क पर धुंआ
दूषित पानी, वाहन असंख्य,
सामूहिक यातायात कमीं,
कारों में केवल एक चले,
दूषित वायु से बीमार शहर,
घने-घने, बनते मकान।
कानून को धता दिखा बिल्डर,
जनता-शासन की आखों में धुल झोंक
खेतों की हरियाली छीन रहे,
गावों की सौम्यता का उड़ा रहे मजाक,
जनता की धैर्य परीक्षा को ललकार रहे।
भूखे प्यासे जब विरोध करें किसान -मजदूर
अपनी जमीन के लिए,
अपने पेट के लिए
बच्चों के अधिकारों के खातिर
लगा रहे गुहार,
कहीं डंडे खाते,
गोली खाते,
कितनी हिम्मत की परीक्षा लेगा समय
जो किसी का नहीं हुआ।
समय तो उसी का है
जिसने सर उठा कर चलना सीखा।
ओस्लो, ३०.०५.११
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