बुधवार, 18 मई 2011

नार्वे का राष्ट्रीय दिवस पर स्वीडेन के टी वी पर बिरंची और बुधिया की कहानी - सुरेशचन्द्र शुक्ल

बुधिया के कोच बिरंची दास को कोई नहीं भुला पायेगा-सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'


कोच दास और और मैराथन धावक बालक बुधिया
१७ मई को नार्वे का राष्ट्रीय दिवस था जो बच्चों के लिए अर्पित होता है। इस दिन स्वीडेन के टी वी चैनल पर विश्व प्रसिद्ध सबसे कम आयु का मैराथन धावक बालक जो उड़ीसा प्रान्त, भारत का रहने वाला है।) उसकी और उसके गुरु बिरंची की सत्य कथा को बहुत ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया एक रिपोर्ताज के रूप में। कथा का आरम्भ बुधिया की माँ का गरीबी से तंग आकर उसे ८०० रुपये में बेचे जाने के बाद से लेकर उसके गुरु बिरंची ने बुधिया को मैराथन का धावक बना दिया और बुधिया विश्व का सबसे कम आयु का मैराथन धावक बालक बन गया। बिरंची के दृढ़ इरादे और खेल के भविष्य को लेकर चिंता आदरणीय और सराहनीय थी। वह बुधिया को भारत की तरफ से ओलम्पिक के लिए तैयार करना चाहता था। पर बुधिया और जूडो के श्रेष्ठ गुरु बिरंची दास की हत्या से रिपोर्ताज के अन्त में दिल ऐसा दहला कि रोंगटे खड़े हो गए। भारत में आम आदमियों को प्रोत्साहन देने का कार्य दूसरे शब्दों में गुदडी से लाल पैदा करने का काम को प्रोतसाहन दिया जाना चाहिए। बिरंची बहुत लोगों के दिल में बसा रहेगा

India's marathon boy, aged three
By Sandeep Sahu BBC News, Bhubaneswar (13 September 2005)
He runs seven hours at a stretch, sometimes as much as 48km (30 miles). On a daily basis.
And Budhia Singh is just three and a half years old.
When Budhia's father died a year ago, his mother, who washes dishes in Bhubaneswar, capital of the eastern Indian state of Orissa, was unable to provide for her four children.
She sold Budhia to a man for 800 rupees ($20).
But the young boy came to the attention of Biranchi Das, a judo coach and the secretary of the local judo association.
Mr Das said he noticed Budhia's talent when scolding him for being a bully.
"Once, after he had done some mischief, I asked him to keep running till I came back," Mr Das told the BBC.
"I got busy in some work. When I came back after five hours, I was stunned to find him still running." Siesta Mr Das, also the president of the residents' association of the run-down area where Budhia used to live, summoned the man who had bought Budhia and paid him his 800 rupees back. Then started a strict diet and exercise regimen that saw Budhia adding a few kilometres to his daily marathon every few days.

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